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________________ १५२ सूत्रकृताग सूत्र से महया पाहि कहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ) कोई पापी धनिकों के घरों में सेंध लगाने वाला बनकर सेंध डालकर उनके धन को चुराकर अपनी आजीविका चलाता है, इस प्रकार का महापाप करने के कारण वह अपने आपको महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है । ( से एगइओ गठिछेदगभावं पडिसंधाय तमेव गठि छेत्ता जव इति से महा पार्वोह कम्मेहिं अत्ताणं उक्वाइत्ता भवइ) कोई व्यक्ति धनाढ्यों के धन की गाँठ काटने वाला बनकर धनिकों की गाँठ काटता फिरता है और इस प्रकार 'महान् पापकर्म के कारण जगत् में स्वयं महापापी के नाम से मशहूर हो जाता है । ( से एगइओ उरब्भियभावं पडिसंधाय तमेव उरब्भं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उक्खात्ता भवइ) कोई पुरुष भेड़ों का चरवाहा बनकर उन भेड़ों को या किन्हीं अन्य वस प्राणियों को मारकर अपनी जीविका उपार्जन करता है, इसलिए जगत् में वह इस महान् पाप के कारण महापापी के नाम से प्रख्यात होता है । ( से एगइओ सोयरियभावं पडिसंधाय महिसं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हंता जाव उबक्खाइत्ता भवइ) कोई पुरुष सौकरिक ( कसाई या सूअरों का पालक) बनकर भैरो, सूअर या दूसरे त्रस प्राणियों को मार-काटकर अपनी रोजी कमाता है । इस प्रकार के महापाप करने के · कारण जगत् में वह महापापी के नाम से मशहूर हो जाता है । ( से एगइओ वागुरियभावं पsिसंधाय मियं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता छेत्ता जाव उवक्खाइत्ता भवइ) कोई पुरुष शिकारी ( मृगघातक) का धन्धा अपनाकर हिरण या दूसरे इस प्राणियों मारकर, छेदन-भेदन करके अपना आहार उपार्जन करता है, वह पापी इस प्रकार के महान् पापकर्म करने के कारण संसार में अपने आपको महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है । ( से एगइओ सउणियभावं परिसंधाय सउण वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ) कोई पापी बहेलिया ( पारधी ) बनकर पक्षी पकड़ने का धन्धा अपनाता है और पक्षी को या दूसरे किसी त्रस प्राणी को मार-काटकर अपनी रोटी-रोजी कमाता है, अत: वह इस महान् पाप के कारण जगत् में महापापी के नाम से प्रख्यात हो जाता है । ( से एगइओ मच्छियभावं पडिसंधाय मच्छं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ) कोई पापी पुरुष मछली पकड़ने वाले ( मछुए या मच्छीमार ) का धन्धा अपनाकर मछली या किसी दूसरे त्रस प्राणी को मारकर अपना आहार उपार्जन करता है । इसलिए वह इस महापाप कर्म के कारण जगत् में अपने आपको महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है । ( से एगइओ गोघा भावं पsि - संधाय तमेव गोणं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उवक्खाइत्ता भवइ) कोई व्यक्ति गौ- घातक यानी कसाई का धन्धा अपनाकर गाय को या दूसरे किसी त्रस प्राणी को मारकर अपनी आजीविका चलाता है, ऐसे महापापकर्म करने के कारण वह जगत् में महापापी के नाम से मशहुर हो जाता है । ( से एगइओ गोवालभावं पडसंधाय तमेव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
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