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________________ प्रथम अध्ययन : पुण्डरीक १०५ हुए पुरुष ही सम्यग्दर्शन- ज्ञान - चारित्र- तपरूप मोक्षमार्ग को प्राप्त करते हैं, समस्त कषायों को जीत लेते हैं, समस्त सावद्यकर्मों से रहित हो जाते हैं, अन्त में समस्त कर्मों का क्षय कर देते हैं । ऐसे पुरुषों द्वारा दिये गये उपदेशों को सुन-समझकर मनुष्य कल्याण - भाजन होता है, वही पुरुष पूर्वोक्त पुष्करिणी में स्थित उत्तम श्वेतकमल को पाने में सफल होने वाला पाँचवाँ पुरुष है । वही पुरुष शुद्ध धर्म का आचरण करके स्वयं भवसागर को पार कर जाता है, और अनेकों भव्य जीवों को पार कर देता है । ऐसे पुरुष को ही श्रमण, माहन, जितेन्द्रिय, ऋषि, मुनि, कृती, क्षान्त, दान्त आदि पदों से विभूषित किया जा सकता है । इस प्रकार सूत्रकृतांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध का प्रथम पुण्डरीक नामक अध्ययन अमर सुखबोधिनी व्याख्या सहित पूर्ण हुआ । Jain Education International || प्रथम अध्ययन समाप्त ॥ For Private & Personal Use Only 00 www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
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