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प्रथम अध्ययन : पुण्डरीक
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हुए पुरुष ही सम्यग्दर्शन- ज्ञान - चारित्र- तपरूप मोक्षमार्ग को प्राप्त करते हैं, समस्त कषायों को जीत लेते हैं, समस्त सावद्यकर्मों से रहित हो जाते हैं, अन्त में समस्त कर्मों का क्षय कर देते हैं ।
ऐसे पुरुषों द्वारा दिये गये उपदेशों को सुन-समझकर मनुष्य कल्याण - भाजन होता है, वही पुरुष पूर्वोक्त पुष्करिणी में स्थित उत्तम श्वेतकमल को पाने में सफल होने वाला पाँचवाँ पुरुष है । वही पुरुष शुद्ध धर्म का आचरण करके स्वयं भवसागर को पार कर जाता है, और अनेकों भव्य जीवों को पार कर देता है । ऐसे पुरुष को ही श्रमण, माहन, जितेन्द्रिय, ऋषि, मुनि, कृती, क्षान्त, दान्त आदि पदों से विभूषित किया जा सकता है ।
इस प्रकार सूत्रकृतांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध का प्रथम पुण्डरीक नामक अध्ययन अमर सुखबोधिनी व्याख्या सहित पूर्ण हुआ ।
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|| प्रथम अध्ययन समाप्त ॥
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