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सूत्रकृतांग सूत्र
अक्रियावादी । ये दोनों ही नियति के हाथ के कठपुतले हैं। ये स्वतन्त्र नहीं हैं। नियति की प्रेरणा से ही क्रियावादी क्रिया का समर्थन करता है, और अक्रियावादी अक्रिया का प्रतिपादन करता है । नियति के अधीन होने के कारण हम (नियतिवादी) इन दोनों को बराबर ही समझते हैं। इस जगत् में कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जिसे अपनी आत्मा अप्रिय हो । ऐसी दशा में कौन प्राणी अपनी आत्मा को कष्ट देने वाली क्रिया में प्रवृत्त होगा ? परन्तु कष्ट मिलता है। अतएव यह सिद्ध होता है कि नियति की प्रेरणा से ही जीव को दुःखजनक क्रिया में प्रवृत्ति करनी पड़ती है । जीव स्वाधीन नहीं है, वह नियति के वशीभूत है । नियति की प्रेरणा से ही जीव को सुख-दुःख मिलते हैं। तथा शुभ कार्य करने वाले दुःखी और अशुभ कृत्य करने वाले सुखी देखे जाते हैं, इससे भी नियति की प्रबलता सिद्ध होती है ।
___ इस प्रकार का प्रतिपादन करके नियतिवादी क्रिया, अक्रिया, पुण्य, पाप, सुकृत, दुष्कृत आदि का कोई विचार नहीं करते । परलोक या पाप के दण्ड का भय न होने के कारण वे बेखटके नाना प्रकार के सावध कर्मों का अनुष्ठान करते हैं, शब्दादि विषयभोगों में बेधड़क प्रवृत्त होते हैं। अपने सुखभोग के लिए वे बुरे से बुरे कृत्य करने में नहीं हिचकिचाते । इन बुरे और पापजनक कर्मों में प्रवृत्त होने के कारण वे आर्य की कोटि में नहीं रहते । एकान्तवादी तथा विपरीत श्रद्धा वाले वे लोग न इधर के रहते हैं, न उधर के; बीच में ही काम-भोगों से आसक्त हो जाते हैं। तात्पर्य यह है कि नियतिवादी लोग न अपना इहलोक सुधार पाते हैं और न परलोक सुधार सकते हैं । दोनों ओर से भ्रष्ट हो जाते हैं।
__ वास्तव में एकान्त नियतिवाद युक्तिसंगत न होने के कारण ठीक नहीं है । नियतिवाद इसलिए युक्तिविरुद्ध है कि नियति उसे कहते हैं, जो वस्तु को उनके स्वभावों में नियत करती है। ऐसी स्थिति में वह यदि वस्तुओं को अपने-अपने स्वभावों में नियत करती है तो फिर नियति को नियति के स्वभाव में नियत रखने के लिए उस नियति से भिन्न एक दूसरी नियति और माननी चाहिए, अन्यथा वह नियति दूसरी नियति की सहायता के बिना अपने स्वभाव में किस तरह नियत रह सकती है ? यदि कहो कि नियति अपने स्वभाव में अपने-आप ही नियत रहती है, उसे किसी दूसरी नियति की सहायता की आवश्यकता नहीं रहती तो इसी तरह यह भी मान लो कि सभी पदार्थ अपने-अपने स्वभाव में स्वयमेव नियत रहते हैं। इसलिए उन्हें अपने स्वभाव में नियत करने के लिए नियति नामक किसी दूसरे पदार्थ की कोई आवश्यकता नहीं है।
नियतिवादी ने जो यह कहा है कि 'क्रियावादी और अक्रियावादी दोनों ही नियति के अधीन होकर क्रियावाद और अक्रियावाद का समर्थन करते हैं, इसलिए ये
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