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प्रथम अध्ययन : पुण्डरीक
व्याख्या
चौथा पुरुष नियतिवादी : एक विश्लेषण
तीन पुरुषों के वर्णन के पश्चात् अब चौथे पुरुष का इस सूत्र में वर्णन किया जाता है । चौथा पुरुष नियतिवादी कहलाता है । इसकी उत्थानिका पूर्वसूत्रवत् है । पानी 'इह खलु' से लेकर 'सुअक्खाए सुपन्नत्ते भवइ' तक पूर्ववत् वर्णन समझ लेना चाहिए | तथाकथित श्रमण या माहन किसी विशिष्ट भक्त अनुयायी को नियतिवादरूप धर्म को ही सत्य बताकर उसी का उपदेश इस प्रकार करते हैं - इस जगत् में समस्त पदार्थों का कारण नियति है । जो बात अवश्य होने वाली है, उसे नियति या होनहार कहते हैं । वही सुख-दुःख, हानि-लाभ, जीवन-मरण आदि का कारण है । यह नियतिवादियों का मन्तव्य है । एक नीति का श्लोक इसी बात को स्पष्ट करता हैप्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण योऽर्थः सोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभो वा । भूतानां महति कृतेऽपि हि प्रयत्ने, नाभाव्यं भवति, न भाविनोऽस्तिनाशः ॥
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अर्थात् - " नियति के प्रभाव से भला-बुरा जो मनुष्य को प्राप्त होना निश्चित है, वह अवश्य ही उसे प्राप्त होता है । मनुष्य चाहे जितना प्रयत्न करे, परन्तु जो होनहार नहीं है, वह नहीं होता, और जो होनहार है, वह हुए बिना नहीं रहता । "
जब हम यह देखते हैं कि बहुत-से मनुष्य अपने-अपने मनोरथ की सिद्धि के लिए समान रूप से प्रयोग करते हैं, परन्तु किसी के कार्य की सिद्धि होती है और किसी के कार्य की नहीं होती, तब निःसन्देह यह मानना पड़ता है कि मनुष्य के कार्य या अकार्य की सिद्धि या असिद्धि नियति के हाथ में है । अतः नियति को छोड़कर काल, ईश्वर, कर्म आदि को सुख-दुःख आदि का कारण मानना अज्ञान है । मगर अज्ञानी जीव इसे समझते नहीं हैं । उन्हें जब कभी सुख या दुःख प्राप्त होता है, तब वे कहा करते हैंयह सुख या दुःख मेरे कर्मों के प्रभाव से मुझे प्राप्त हो रहा है, अथवा काल के प्रभाव से यह सुख या दुःख प्राप्त होता है, अथवा यह सुख या दुःख मुझे ईश्वर के द्वारा मिल रहा है । तथा जब किसी दूसरे को सुख या दुःख प्राप्त होता है, तब भी वे यही मानते हैं कि ये दूसरे के कर्म, काल या ईश्वर के प्रभाव से प्राप्त हुए हैं, वास्तव में यह मन्तव्य समीचीन नहीं है । क्योंकि सब कुछ नियति के प्रभाव से ही प्राणी को प्राप्त होता है; काल, कर्म या ईश्वर आदि के प्रभाव से नहीं । इस कारण विवेकी नियतिवादी पुरुष सुख-दु:ख आदि की प्राप्ति होने पर यह मानता है कि मैं जो सुख या दुःख प्राप्त करता हूँ, वह मेरे द्वारा किये हुए कर्मों का फल नहीं है, तथा दूसरा भी जो कुछ सुख-दुःख पाता है, वह भी उसके द्वारा कृतकर्मों का फल नहीं है; किन्तु नियति इसका कारण है।
इस जगत् में दो प्रकार के पुरुष पाये जाते हैं -- एक क्रियावादी, और दूसरा
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