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आदान : पन्द्रहवाँ अध्ययन
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भावार्थ जो पदार्थ उत्पन्न हो चुके हैं, वर्तमानकाल में जो पदार्थ विद्यमान हैं, और जो भविष्यकाल में होंगे, उन सब पदार्थों को दर्शनावरणीयकर्म का सर्वथा क्षय करने वाले, जीवों के त्राता एवं धर्मनायक पुरुष जानते हैं ।
व्याख्या
त्रिकालवर्ती पदार्थों का ज्ञाता इस गाथा में तीनों काल में होने वाले पदार्थों को कौन जानता है ? इस सम्बन्ध में तीन विशेषण देकर बताया गया है कि जो इस प्रकार की विशेषता से युक्त होता है, वही जानता है ।
जो पुरुष भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों कालों के पदार्थों को जानता है वही समस्त बन्धनों को जानने और तोड़ने वाला है। साथ ही इन सब त्रिकालवर्ती पदार्थों के यथार्थस्वरूप का निरूपण करने के कारण वह पुरुष नायक अर्थात् प्रणेता है । वही पुरुष भूत-भविष्य-वर्तमान त्रिकालवर्ती पदार्थों को द्रव्यादि चार स्वरूप से तथा द्रव्य और पर्याय के निरूपण से जानता है तथा जानता हुआ विशिष्ट उपदेश देकर वह प्राणियों को संसारसागर से पार उतारता है, और सब जीवों की रक्षा करता है। दर्शनावरणीयकर्म का क्षय करने के साथ-साथ चारों घातिकर्मों का क्षय हो ही जाता है।
मूल पाठ अंतए वितिगिच्छाए, से जाणति अणेलिसं ! अणेलिसस्स अक्खाया, ण से होइ तहि तहिं ।।२।।
संस्कृत छाया अन्तको विचिकित्साया: स जानात्यनीदृशम् । अनीदृशस्याख्याता, स न भवति तत्र तत्र ॥२॥
अन्वयार्थ (वितिगिच्छाए अन्तए) जो संशय को दूर करने वाला है, (से अणेलिसं जाणति) वह पुरुष सबसे बढ़कर पदार्थ को जानता है। (अणेलिसस्स अक्खाया) जो पुरुष सबसे बढ़कर वस्तुतत्त्व का निरूपण करने वाला है, (से तहि तहिं ण होइ) वह इधर-उधर के बौद्धादि दर्शन में नहीं है।
भावार्थ संशय को दूर करने वाला पुरुष सबसे बढ़कर पदार्थ को जानता है । जो पुरुष सबसे बढ़कर वस्तुतत्त्व का निरूपण करने वाला है, वह इधरउधर के बौद्धादि दर्शनों में नहीं है ।
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