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ग्रन्थ : चौदहवाँ अध्ययन
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पुष्ट-परिपक्व नहीं है, उसे (निस्सारियं बुसिमं मन्नमाणा) अपने गच्छ से निकला या निकाला हुआ देखकर अपने वशीभूत-सा मानते हुए (अणेगे पादधम्मा) अनेक पाषण्डी परतीर्थिक (अपत्सजायं दियस्स छायं व) पंख न लगे हुए पक्षी के बच्चे की तरह (हरिसु ण) उसका हरण कर लेते हैं ।।३।।
(अणोसिए मणुए) गुरुकुल में निवास न करने वाला साधक पुरुष (गंतरिति णच्चा) अपने कर्मों का नाश नहीं कर सकता है, यह जानकर (ओसाणं समाहि इच्छे) अपरिपक्व साधक के लिए गुरुकुल में निवास एवं समाधि अपेक्षित है। (दवियस्स वित्त ओभासमाणे) मुक्तिगमन के योग्य पुरुष के आचरण को स्वीकार करता हुआ (आसुपन्नो बहिया ण णिक्कसे) प्रत्युत्पन्नमति साधु गच्छ से बाहर न निकले ॥४॥
भावार्थ जिसके पंख अभी तक पूरी तरह से नहीं आए हैं, ऐसा पक्षी का बच्चा जैसे उड़कर अपने घोंसले से वाहर जाना चाहता है, किन्तु पंख पूरी तरह से लगे बिना उड़ नहीं सकता, फिर भी पंख फड़फड़ाने का प्रयास करते देखकर उसे मांसाहारी ढंक आदि पक्षी हरण कर लेते हैं और मार डालते हैं ॥२॥
__इसी प्रकार धर्मसाधना में अपरिपक्व, अपुष्ट शैक्ष साधक को गच्छ से निकले या निकाले हए अकेले विचरण करते देखकर पंख से विहीन पक्षी के बच्चे की तरह बहुत-से पाषण्डी परतीथिक बहकाकर उड़ा ले जाते हैं और धर्मभ्रष्ट कर देते हैं ॥३॥
जो अपरिपक्व साधक गुरुकुल में निवास नहीं करता, वह अपने कर्मों का नाश नहीं कर पाता, यह जानकर साधक गुरु के सान्निध्य में निवास करे और समाधि की इच्छा रखे । वह मुक्ति जाने के योग्य पुरुष के आचरण को स्वीकार करे और गच्छ से बाहर न निकले ॥४॥
व्याख्या
अपरिपक्व साधक के लिए गुरुकुल से बाहर खतरा है दूसरी, तीसरी और चौथी गाथा में शास्त्रकार ने अपरिपक्व, कच्चे साधक को गुरुसानिध्य से बाहर जाने से क्या-क्या खतरे पैदा होते हैं ? इसे पक्षी के बच्चे का दृष्टान्त देकर मझाया है। जैसे कोई पक्षी का बच्चा अभी उड़ने लायक नहीं हुआ है, फिर भी उसके मन में बार-बार हूक उठती है उड़ने की, मगर अभी तक उसके उड़ने लायक पंख नहीं आए हैं। फिर भी जोश में आकर घोंसले से बाहर निकल जाता है, और थोड़े-थोड़े पंख फड़फड़ाकर उड़ने का प्रयास करता है किन्तु उड़ नहीं सकता। ठीक इसी समय कुछ मांसाहारी पक्षी जो कि इसी ताक में
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