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सूत्रकृतांग सूत्र
(जे आयओ परओ वावि णच्चा) जो पुरुप स्वयं या दूसर रो धर्म को जान कर उपदेश करता है, (अप्पणो परोसि य अलं होइ) अपना और दूसरों का उद्धार या रक्षण करने में समर्थ है, (जे अणुवोइ धम्म पाउकुज्जा) जो सोच-विचारकर धर्म को प्रकट करता है, (तं जोइभूयं च सया वसेज्जा) उस ज्योतिस्वरूप (तेजस्वी) मुनि के सान्निध्य में सदा निवास करना चाहिए ॥१६।।
(जो अत्ताणं जाणइ) जो आत्मा को जानता है। (जो य लोग गई णागई च जाणइ) जो लोक को, जीवों की गति और अनागति को जानता है, (जो सासयं असासयं जाई मरणं च जणोववायं जाण) जो शाश्वत (नित्य) अनित्य, जन्म, मरण और प्राणियों के अनेक गतियों में गमन को जानता है ॥२०॥
(अहोऽवि सत्ताणं विउट्टणं च) नीचे नरक आदि में जीवों को नाना प्रकार की पीड़ा होती है, यह जो जानता है, (जो आसवं संवरं च जाणइ) तथा जो आस्रव (कर्मों के आगमन) और संबर (कर्मों के निरोध) को जानता है । (जो निज्जर दुक्खं च जागइ) जो निर्जरा और दुःख को जानता है। (सो किरियवायं भासिउमरिहइ) वही ठीक-ठीक क्रियावाद को बता सकता है ।।२१।।
भावार्थ इस संसार में कुंथु आदि छोटे शरीर वाले भी प्राणी हैं और बड़े शरीर वाले प्राणी भी हैं। इन प्राणियों को अपने समान समझकर तत्त्वदर्शी पुरुष अप्रमत्तयोगों में विचरण करे तथा विशुद्ध संयम का पालन करे अथवा वह तत्त्वदर्शी पुरुष अप्रमत्त साधुओं के सान्निध्य में आकर संयम में प्रगति करे या दीक्षा ग्रहण करे ।।१८॥
___जो स्वयं या दूसरे के द्वारा धर्म का जानकर उसका उपदेश देता है, वह अपना तथा दूसरे का उद्धार या रक्षण करने में समर्थ है, जो सोचविचारकर धर्म को प्रगट करता है, उस ज्योतिस्वरूप मुनि के सान्निध्य में सदा निवास करना चाहिए ॥१६।।।
जो आत्मा को जानता है, लोक के स्वरूप को जानता है, जो जीवों की गति और अनागति को जानता है, जो शाश्वत-मोक्ष और अशाश्वत यानी संसार को जानता है तथा जो जन्म, मरण और नाना गतियों में प्राणियों के गमन को जानता है ।।२०।।
जो नीचे लोक की नरकादि गतियों में जीवों की नाना प्रकार की यातनाओं को जानता है, तथा जो आस्रव और संवर को जानता है एवं दुःख और निर्जरा को जानता है, वही क्रियावाद को ठीक-ठीक बता सकता है ॥२१॥
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