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सूत्रकृतांग सूत्र
हो सकती, क्योंकि ऐसा न मानने पर सर्ववस्तुएँ सर्ववस्तुरूप हो जाएँगी । इस प्रकार जगत् के सब व्यवहारों का उच्छेद हो जाएगा । अतः वस्तु कथञ्चित् है, ऐसा ही मानना चाहिए। तथा ज्ञानरहित क्रिया से कोई कार्य सिद्ध नहीं होता, क्योंकि उस कार्य के उपाय का ज्ञान न हो तो उस उपाय से प्राप्त होने वाले पदार्थ की प्राप्ति नहीं होती है । सभी क्रियाएँ ज्ञान के साथ ही अभीष्ट फल प्रदान करती हैं । दशवेकालिक सूत्र में कहा है -
पढमं नाणं तओ दया, एवं चिट्ठइ सव्वसंजए । अन्नाणी किं काही, किं वा नाही य सेय पावगं ॥
अर्थात् - पहले ज्ञान होता है, तब दया की जाती है । सारे संयमी पुरुष पहले जीवों का ज्ञान प्राप्त करते हैं, फिर दया का आचरण करते हैं । जिसको जीवादि पदार्थों का ज्ञान नहीं है, वह पुरुष कैसे दया कर सकता है ? वह कल्याण (पुण्य) और पाप को भी कैसे जान सकता है ?”
अतः क्रिया के समान ज्ञान की प्रधानता है । साथ ही यह भी समझ लेना चाहिए कि एकमात्र ज्ञान से भी कार्यसिद्धि नहीं होती, क्योंकि क्रियारहित ज्ञान पंगु के समान है, इसी तरह ज्ञानरहित क्रिया अंधे के समान है । दोनों अलग-अलग रह कर कार्य करने में समर्थ नहीं हैं । इसीलिए शास्त्रकार कहते हैं - 'आहंसु विज्जाचरणं पमोक्ां ।” अर्थात् — तीर्थंकर गणधर आदि ने ज्ञान और चारित्र (क्रिया) दोनों से मोक्ष बताया है ।
इस ११वीं गाथा की व्याख्या दूसरी तरह से भी की जा सकती है । वह इस प्रकार - वे तीर्थंकर जिन्होंने इन समवसरणों का निरूपण किया है, वे अनिरुद्धप्रज्ञ ( अप्रतिहत केवलज्ञान के धनी) पूर्वोक्त रूप से या आगे कहे जाने वाले ढंग से वस्तुस्वरूप का कथन करते हैं । वे केवलज्ञान के द्वारा चौदह रज्जुस्वरूप या स्थावरजंगमरूप इस लोक को हस्तामलकवत् जानकर तीर्थंकर पद को या केवलज्ञान को प्राप्त हैं । तथा वे श्रमण (निर्ग्रन्थ साधु ) तथा माहन यानी श्रावक संयतासंयत जिस-जिस प्रकार से मोक्षमार्ग व्यवस्थित है - सत्य है, उस उस प्रकार से उपदेश देते हैं । वे कहते हैं कि संसार के प्राणियों को जो कुछ सुख-दुःख प्राप्त होता है, वह सब अपने किये हुए कर्म का फल है, काल, ईश्वर आदि के द्वारा दिया हुआ नहीं है । इसीलिए किसी ने कहा है
सव्वो पुव्वकयाणं कम्माणं पावए फलविवागं । अवराहेसु गुणेसु य निमित्तमित्तं परो होई ||
अर्थात् - सभी प्राणी अपने पूर्वकृत कर्मों का फल प्राप्त करते हैं, दूसरा तो बुराई और भलाई का केवल निमित्तमात्र होता है ।
निष्कर्ष यह है कि ज्ञान और क्रिया दोनों से ही मोक्ष प्राप्त होता है | अकेले क्रियानिरपेक्ष ज्ञान से, अथवा अकेली ज्ञाननिरपेक्ष क्रिया से मोक्ष नहीं हो सकता ।
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