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सूत्रकृतांग सूत्र है, उनमें ममता रखता हुआ वह पीड़ित होता है। वह मूढ़ दूसरे-दूसरे पदार्थों में आसक्त होता रहता है।
व्याख्या जन्म, संवास, अतिसंसर्ग आदि का ममत्व
यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि मनुष्य जिस ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, उग्रकुल, भोगकुल आदि कुल में जन्म लेता है, उस कुल के साथ उसकी ममता, भूर्जा गाढ़ से गाढ़तर होती जाती है। उपलक्षण से जिस किसी देश, प्रान्त, नगर, राष्ट्र आदि में या हिन्दू, मुसलमान, जैन, वैष्णव आदि कौम में मनुष्य उत्पन्न होता है, उसके साथ उसका मोह एवं स्नेह होता जाता है। वह उस कुल, जाति, सम्प्रदाय, राष्ट्र, प्रान्त, भाषा, कौम आदि को अपना समझता है, और उससे भिन्न कुल आदि को पराया। इससे एक के प्रति जहाँ राग (मोह) बन्धन होता है, वहाँ दूसरों के प्रति द्वेष, घृणा, ईर्ष्या, वैर-विरोध प्रायः हो जाता है । अविवेकी और मोहान्ध व्यक्ति स्वार्थवश अपने माने हुए तथाकथित कुल आदि का ही पक्ष लेता है, उसके लिये मरने-मारने को तैयार हो जाता है, उसको ही सुख-सुविधाओं एवं स्वार्थों का ध्यान रखता है, उसकी हो भौतिक उन्नति के लिये प्रयत्न करता है, फिर भले ही वह कुल आदि विपथगामी हो, भले ही उस कुल आदि का कोई व्यक्ति अपराधी हो, दोषी हो या अनाचारी हो। ऐसे किसी भी कुल (वंश, राष्ट्र, जाति, कौम आदि) के व्यक्ति की जरा भी पराजय, अवनति अथवा यातना की बात सुनता है तो वह ममत्ववश दुखी होता रहता है । अगर उस व्यक्ति से अपना कोई स्वार्थ सधता था, वह भंग हो जाता है तो वह तिलमिला उठता है अथवा उसकी मृत्यु होने पर वह शोक, विलाप, चिन्ता, रुदन करता है, उसके वियोग में सिर पटक-पटक कर मर जाता है, छाती-माथा कूटता है, आत्महत्या कर लेता है। इस प्रकार संकीर्ण स्वार्थ और ममत्व में वह रचा-पचा रहता है ।
___ इसी प्रकार जिन माता, पिता, भाई, बहन, स्त्री, पुत्र-पुत्री, मामा, चाचा, नाना, बाबा, दादी, श्वसुर, सास, साला आदि के साथ निवास करता है उनके प्रति भी उसका ममत्वभाव हो जाता है। मनुष्य जिनके संसर्ग में रहता है, उनके प्रति उसका मोह और राग हो जाता है । मोहवश वह यही समझता है 'ये मेरे हैं, मैं इनका हूँ।' इस प्रकार के ममत्वभाव के कारण वह उनसे सहायता, सेवा और स्वार्थसिद्धि की अपेक्षा रखता है, अगर वह आशा या अपेक्षा पूर्ण हो जाती है, तब तो मन में प्रसन्न रहता है, अन्यथा उनके प्रति अप्रसन्न होता है, मन में दुःख पाता है, कुढ़ता है । उन्हें भला-बुरा कहता है । वे सम्बन्धीजन भा उससे बहुत बड़ी आशा
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