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समय : प्रथम अध्ययन - प्रथम उद्देशक
रखते हैं, परन्तु जब उनकी वह आशा पूर्ण नहीं होती है तो वे उससे विमुख हो जाते हैं । इस प्रकार एक दूसरे के प्रति ममत्वभाव बढ़ाते रहते हैं । इसी ममत्व परम्परा के कारण वह अज्ञानी जीव राग-द्वेषवश कर्मबन्धन के कारण कर्मोपदिष्ट नरक, तिर्यन्च, मनुष्य और देव इन चार गतिरूप संसार में परिभ्रमण करता हुआ नाना प्रकार के शारीरिक, मानसिक दुःख पाता है, पीड़ित होता है। ऐसे जीव को शास्त्रकार ने 'बाल' कहा है । बाल का अर्थ है अज्ञ, सत् और असत् के विवेक से रहित ।
वह केवल अपने माता-पिता आदि सम्बन्धी एवं इष्ट जनों पर ही नहीं, अपने शरीर और शरीर से सम्बन्धित द्विपद, चतुष्पद प्राणी, सोना, चाँदी, मणि, माणिक, सिक्के, घर के सामान, सुख- सामग्री, मकान, खंत, बाग, दुकान, जमीन, सम्पत्ति आदि विभिन्न वस्तुओं पर भी जो उसके सम्पर्क में आती हैं, जिनके साथ रात-दिन वास्ता पड़ता है उनके प्रति भी गाढ़ आसक्त हो जाता है । उनके टूटने, फूटने, नष्ट होने, चुराये जाने, लूटे जाने, छीने जाने या आग - पानी आदि से वियोग हो जाने पर गाढ़ मूर्च्छा (आसक्ति) के कारण वह रोता- पीटता है, विलाप करता है, खाना-पीना छोड़ देता है, आँसू बहाता है, शोक करता है, चिन्ता में निमग्न हो जाता है, और कभी-कभी आत्महत्या भी कर बैठता है अथवा अति शोक से उसकी हृदयगति अवरुद्ध हो जाती है । ये सब ममत्व के खेल हैं । प्राणी उन तुच्छ वस्तुओं के मोह पाश में बँध कर रात-दिन नये-नये कर्मों के बन्धन करता रहता है । ऐसा व्यक्ति कर्मबन्धन की परम्परा से सहसा मुक्त नहीं हो पाता । यही शास्त्रकार का आशय है । इसीलिये शास्त्रकार कहते हैं - 'जस्सिं कुले 'मुच्छिए ।'
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तात्पर्य यह है कि मनुष्य जन्म लेते ही पहले माता-पिता के सम्पर्क में आता है, उनसे स्नेह (राग) करता है, क्योंकि उनके समीप ही अधिक रहता है । फिर भाई-बहन के साथ स्नेह होता है । फिर खेल-कूद में मित्रों और हमजोलियों के साथ उसका स्नेह हो जाता है । बाल्यावस्था बीत जाने पर युवावस्था में आने पर पत्नी आदि पर स्नेह करता है । फिर जब पुत्र, पौत्र आदि उत्पन्न हो जाते हैं, उनके प्रति आसक्ति हो जाती है इसके साथ ही अपने माने हुए कुल, वंश, जाति, देश, सम्प्रदाय, कौम, प्रान्त, राष्ट्र आदि के प्रति भी ममत्व बढ़ता जाता है और उन तमाम पदार्थों के प्रति भी उसकी आसक्ति हो जाती है, जिनके सम्पर्क में वह आता है, जिनको वह अपने मान लेता है । उन सब सचित्त अचित्त वस्तुओं के प्रति ममत्वबद्ध होकर कर्मबन्धन के फलस्वरूप यहाँ से मर कर परलोक में जाता है, वहाँ फिर नये माता-पिता आदि से ममत्व बन्धन स्थापित हो जाता है । इसलिये
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