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समवसरण : बारहवाँ अध्ययन
मुम्मुई होइ) वे स्याद्वादियों के कथन का अनुवाद करने (दोहराने) में भी असमर्थ होकर मूक हो जाते हैं। (इम दुपक्ख इममेगपक्खं छलायतणं कम्मं आहेसु) वे इस परमत को द्विपक्ष-प्रतिपक्षयुक्त तथा अपने मत को एक पक्ष से युक्त (प्रतिपक्षरहित) बताते हैं तथा स्याद्वादियों के वचनों का खण्डन करने के लिए छल युक्त वचन एवं कर्म-.-.व्यवहार का प्रयोग करते हैं ।।५।।
(अबुज्झमाणा ते अकिरियवाई) वस्तुस्वरूप को न समझने वाले वे अक्रियावादी (विरूवरूवाणि एवमाइक्खंति) नाना प्रकार के शास्त्रों का कथन करते हैं । (जे मायइत्ता बहबे मस्सा ) जिन शास्त्रों का आश्रय लेकर बहुत-से मनुष्य (अणोवदग्ग संसारं भमंति) अनन्तकाल तक इस चातुर्गतिक संसार में परिभ्रमण करते हैं ॥६॥
(ण आइच्चो उएइ) सर्वशून्यतावादी कहते हैं कि न तो सूर्य उदय होता है, (ण अत्थमेइ) न अस्त होता है, (चंदिमा ण वड्ढई हायई वा) और न ही चन्द्रमा बढ़ता है, न घटता है। (सलिला न सदति) तथा पानी बहता नहीं है, (ण वंति वाया) और हवाएं चलती नहीं है । (कसिण लोए हु णियतो वंझो) यह सारा जगत् सदा अस्थायी है, और मिथ्याभूत --- शून्यरूप है ।।७।।
(जहा हि अंध जोतिणा अपि सह) जैसे अंधा पुरुष ज्योति (प्रकाश) के साथ रहकर भी (हीणगेत्त रूवाइ णो पस्सति) नेत्रहीन होने के कारण रूप को नहीं देखता । (एवं निरुद्धपन्ना ते अकिरियाई) इसी तरह बुद्धिहीन अक्रियावादी (संत वि किरियं न पस्संति) सामने विद्यमान क्रिया को नहीं देखते ।।८।।
(संवच्छरं सुविणं लक्खणं च) ज्योतिषशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, लक्षणशास्त्र (निमित्त देहं च उप्पाइयं च) निमित्तशास्त्र, शरीर के तिल आदि चिह्नों का फल बताने वाला शास्त्र एवं भूकम्प, उल्कापात, दिग्दाह आदि उत्पात का फल बताने वाला शास्त्र, (एयं अलैंग अहित्ता) इन आठ अंगों वाले शास्त्रों को पढ़कर (लोगंसि बहवे) जगत् में बहुत-से लोग (अणागताइं जाणंति) भविष्य की बातों को जान जाते हैं ॥६॥
(केई निमित्ता तहिया भवंति) कई निमित्त तो रात्य (तथ्य) होते हैं, (केसिंचि तं गाणं विप्पडिएति) किन्हीं-किन्हीं निमित्तवादियों का वह ज्ञान विपरीत (यथार्थ नहीं) होता है, (ते विज्जभावं अहिज्जमाणा) यह देख कर ज्ञान प्राप्त कराने वाली विद्या का अध्ययन न करते हुए अक्रियावादी (विज्जा परिमोक्खमेव आहंसु) विद्या से छुटकारा पाने को ही कल्याणकारक करते हैं ॥१०॥
भावार्थ पूर्वोक्त अक्रियावादी लोकायतिक आदि अपनी वाणी से स्वीकार किये
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