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समवसरण : बारहवाँ अध्ययन
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से (विनय से ) ही दीखती है । ( लवादसंकी) तथा लव यानी कर्मबन्ध की शंका करने वाले ( अकिरियवादी) अक्रियावादी (अणाग एहि ) भूत और भविष्य के द्वारा वर्तमान की असिद्धि मानकर ( णो किरियं आहंसु ) क्रिया का निषेध करते हैं ||४|| भावार्थ
जो सत्य है, उसे असत्य, तथा जो असाधु (दुर्जन) है, उसे साधु (सज्जन) बताते हुए बहुत से विनयवादी पूछने पर विनय को ही मोक्ष का मार्ग बताते हैं ||३||
विनयवादी वस्तुतत्त्व को न समझकर, केवल यही कहते हैं - हमें अपने प्रयोजन की सिद्धि विनय से ही दीखती है । इसी तरह कर्मबन्ध की आशंका करने वाले अक्रियावादी भूत और भविष्यकाल के द्वारा वर्तमान को असिद्ध मानकर क्रिया का निषेध करते हैं ||४||
व्याख्या
विनयवादी और अक्रियावादी का मन्तव्य अब शास्त्रकार विनयवादियों और अक्रियावादियों के मन्तव्य प्रस्तुत करके उनके मत का निराकरण तीसरी, चौथी गाथा के द्वारा प्रस्तुत करते हैं । विनयवादी अपनी सद्-असद् - विवेकशालिनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करते, वे प्रत्येक का विनय ( जो वास्तव में विनय नहीं, चापलूसी, खुशामद, चाटुकारिता या मुखमंगलता होती है) करने की धुन में अच्छे-बुरे, सज्जन- दुर्जन, धर्मात्मा-पापी, सुबुद्धि- दुर्बुद्धि, सुज्ञानीअज्ञानी सभी को एक सरीखा मानकर सबको वन्दन नमन, मान-सम्मान, दान आदि देता है | वह सत्य-असत्य को परख नहीं सकता । जो सत्य है, उसे परख न सकने के कारण जो व्यक्ति जैसे समझा देता है, वैसे मानकर उसे असत्य कह देते हैं, और जो सरासर असत्य है, उसे लोगों के बहकावे में आकर अपनी बुद्धि पर ताला लगा - कर सत्य मान लेता है | सत्य का अर्थ है - ' सद्द्भ्यो हितम् सत्यम्' जो प्राणियों का हित-कल्याण करने वाला वस्तु के यथार्थ स्वरूप का निरूपण है, उसे सत्य कहते हैं । अथवा मोक्ष या संयम को सत्य कहते हैं, उस सत्य को विनयवादी असत्य कहते हैं । सम्यग्दर्शन- ज्ञान-चारित्र मोक्ष का वास्तविक (सत्य) मार्ग है, उसे विनयवादी असत्य कहते हैं । यद्यपि केवल विनय से मोक्ष नहीं होता, तथापि वे केवल विनय से ही मोक्ष को मानते हैं, इस प्रकार वे असत्य को सत्य मानते हैं । तथा जो पुरुष विशिष्ट धर्माचरण यानी साधु की क्रिया नहीं करता, वह असाधु है, उसे केवल वन्दन - नमन आदि औपचारिक विनय की क्रिया करने मात्र से साधु मान लेते हैं । वे धर्म के यथार्थ परीक्षक नहीं हैं । वे केवल औपचारिक विनय से धर्म की उत्पत्ति मानते हैं, यह युक्तिसंगत नहीं हैं । ये बुद्धि पर ताला लगाकर चलने वाले, गंवार और अनाड़ी लोगों की तरह केवल विनय के साथ विचरण करते हैं, वे केवल विनय ( औपचारिक
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