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________________ समवसरण : बारहवाँ अध्ययन ८५१ पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष, इन नौ पदार्थों को क्रमशः स्थापन करके उनके नीचे स्वतः और परतः, ये दो भेद रखने चाहिए। उनके नीचे भी नित्य और अनित्य दो भेदों की स्थापना करनी चाहिए। इसके नीचे भी क्रमशः काल, स्वभाव, नियति, ईश्वर, और आत्मा इन पाँच पदों की स्थापना करनी चाहिए। उनका विवरण इस प्रकार है-- (१) जीव अपने आप विद्यमान है, (२, जीव दूसरे से उत्पन्न होता है, (३) जीव नित्य है, (४) जीव अनित्य है। इन चारों भेदों को काल आदि ५ के साथ लेने से २० भेद होते हैं। जैसे कि (१) जीव काल से है (काल पाकर होता है), (२) जीव काल पाकर अपने से या दूसरे से होता है, (३) जीव चेतन गुण से सदा नित्य है, (४) जीव की बुद्धि काल पाकर घटती-बढ़ती रहती है, इसलिए अनित्य है, (५) जीव स्वभाव से है, (६) जीव स्वभाव से रहता हुआ स्वतः या परतः प्रकट होता है, (७) जीव स्वभाव से स्वयं कायम रहने के कारण नित्य है, (८) जीव स्वभाव से मृत्यु पाता है, इसलिए अनित्य है, (३) जीव होने वाला होता है (नियति से) तो हजारों उत्पन्न होकर स्वयं होता है, (१०) जीव होने वाला होता है तो दूसरे कारणों के मिलने से उत्पन्न होता है, (११) जीव होने वाला होता है तो उत्पन्न होकर सदैव (नित्य) रहता है, (१२) जीव होनहार होता है तो उत्पन्न होकर मरता (अनित्य) है, (१३) जीव ईश्वर से उत्पन्न होता है, (१४) जीव ईश्वर द्वारा रचित हुआ अपने निमित्तों से उत्पन्न होता है, (१५) जीव ईश्वर द्वारा रचित नित्य है, (१६) जीव ईश्वर द्वारा रचित अनित्य है, (१७) जीव अपने रूप में स्वयं (आत्मा से) उत्पन्न होता है, (१८) जीव अपने रूप में दूसरे से उत्पन्न होता है, (१६) जीव अपने रूप से नित्य है, (२०) जीव अपने रूप से अनित्य है। इस प्रकार जीव के विषय में २.. भंग होते हैं। इसी तरह अजीव आदि ८ तत्त्वों में भी प्रत्येक के बीस-बीस भंग होते हैं। इस प्रकार २०४-१८० भेद क्रियावादियों के होते हैं। ____ अक्रियावादियों के ८४ भेद इस प्रकार हैं-- जीव आदि ७ पदार्थों को लिखकर उसके नीचे स्वतः और परतः ये दो भेद स्थापित करना चाहिए। उसके नीचे काल, यदृच्छा, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा ये ६ पद रखने चाहिए । जैसे-- (१) जीव स्वतः काल से नहीं है, (२) जीव परतः काल से नहीं है, (३) जीव यदृच्छा से स्वयं नहीं है, (४) जीव यदृच्छा से परतः नहीं है। इसी तरह नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा के साथ भी प्रत्येक के दो-दो भेद होने से कुल १२ भेद होते हैं। जीव आदि सातों पदार्थों के प्रत्येक के १२ भेद होने ने १२४७ -- ८४ भेद होते हैं। अज्ञानवादियों के ६७ भेद इस प्रकार हैं- जीवादि ह तत्त्वों को क्रमशः लिख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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