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वकृतांग सूत्र
वादी हैं, तथा जो विनय से मोक्ष मानते हैं, वे विनयवादी हैं। भेदसहित इन चारों मतों की भूल बताकर जिस सुमार्ग में इन्हें स्थापन किया जाता है, वह भावसमवसरण है।
प्रस्तुत अध्ययन में केवल इन चार मतों अर्थात् वादों का ही उल्लेख है। एकान्तरूप से अपने मत का आग्रह होने के कारण इन मतवादियों को मिथ्याष्टि और इनके मत को मिथ्यादर्शन कहा गया है। उदाहरणार्थ-- क्रियावादी एकान्तरूप से जीवादि पदार्थों का अस्तित्व स्वीकार करते हैं कि जीवादि पदार्थ हैं ही। जब जीव को एकान्तरूप से स्वीकार किया जाता है तो यही कहा जा सकता है कि वह सब प्रकार है किन्तु किसी प्रकार से वह नहीं भी है, यह नहीं कहा जा सकता। ऐसी स्थिति में जीव जैसे अपने स्वरूप से सत् है, उसी तरह दूसरे (घटपटादि) रूप से भी सत होने लगेगा। ऐसा होने से जगत् के समस्त पदार्थ एक हो जाएँगे। उनमें कोई भेद न होने से अनेकरूप जगत् नहीं हो सकता । परन्तु यह प्रत्यक्षविरुद्ध है, इष्ट भी नहीं है। इसलिए यह मत ठीक नहीं है, मिथ्यादर्शन है। इसी प्रकार जो एकान्त रूप से कहते हैं कि जीवादि पदार्थ सर्वथा नहीं हैं, वे अत्रियावादी हैं। ये भी एकान्त एवं असत्य प्ररूपणा करने के कारण मिथ्यादृष्टि हैं। यदि एकान्तरूप से जीव का निषेध किया जाय तो कोई निषेध कर्ता न होने से जीव नहीं है' ऐसा निषेध भी नहीं किया जा सकता। और 'जीव नहीं है' इस निषध के सिद्ध न होने से जीवादि सभी पदार्थों का अस्तित्व सिद्ध हो जाता है। क्रियावादी आत्मा, कर्मफल आदि को मानते हैं, जबकि अक्रियावादी आत्मा, कर्मफल आदि को नहीं मानते । ज्ञान को न मानने वाले अज्ञानवादी हैं। इनका मत है कि 'अज्ञान ही कल्याण का मार्ग है।' ये भी मिथ्यादृष्टि हैं, क्योंकि ज्ञान के बिना 'अज्ञान ही श्रेष्ठ है' यह भी नहीं कहा जा सकता है। परन्तु अज्ञानवादी ऐसा ही कहते हैं, इसलिए अज्ञानवादियों ने भी ज्ञान को स्वीकार कर लिया। जो केवल विनय को ही मानते हैं, वे विनयवादी हैं। वे केवल विनय से ही स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति मानते हैं। ये किसी मत की निन्दा नहीं करते । अपितु समस्त प्राणियों का विनयपूर्वक आदर करते हैं। विनयवादी लोग गधे से लेकर गाय तक, चाण्डाल से लेकर ब्राह्मण तक एवं सभी स्थलचर, जलचर एवं खेचर प्राणियों को नमस्कार करते रहते हैं यही उनका विनयवाद है। परन्तु ज्ञान और क्रिया के बिना मोक्ष नहीं होता, इसलिए केवल विनय से मोक्ष का सिद्धान्त मिथ्या है।।
क्रियावादी के १८०, अक्रियावादी के ८४, अज्ञानवादी के ६७ और विनयवादी के ३२, इस प्रकार कुल मिलाकर इन चारों की संख्या ३६३ होती है--- यह नियुक्तिकार ने बताया है । वृत्तिकार ने इन भेदों की नामपूर्वक गणना की है।
क्रियावादियों के १८० भेद होते हैं। वे इस प्रकार हैं- जीव, अजीव, पुण्य,
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