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________________ ८४६ सूत्रकृतांग सूत्र अथवा मोक्ष को ही शान्ति कहते हैं। मोक्ष तो समस्त तीर्थकरों (वैकालिक) का उसी तरह आधार है जिस तरह बस-स्थावर समस्त जीवों का आधार पृथ्वी है । मोक्ष की प्राप्ति भावमार्ग के बिना सम्भव नहीं है, इसलिए सभी तीर्थकरों ने शान्तिरूप भावमार्ग का ही कथन एवं आचरण किया है। मूल पाठ अह णं वयमापन्न फासा उच्चावया फुसे । ण तेसु विणिहण्णेज्जा, वाएण व महागिरी ॥३७॥ संस्कृत छाया अथ तं व्रतमापन स्पर्शा उच्चावचाः स्पृशेयुः । न तेषु विनिहन्यात्, वातेनेव महागिरिः ॥३७।। __ अन्वयार्थ (अहं) इसके (भावमार्ग ग्रहण करने के) पश्चात् (वयमापन्नं ण) व्रत ग्रहण किये हुए उस साधु को (उच्चावया फासा फुसे) नाना प्रकार के सम-विषम परीषह और उपसर्ग स्पर्श करें, (तेसु ण विणिहाणेज्जा) तो साधु उनसे प्रतिहत या पराजित न हो, अथवा डिगे नहीं, (वातेनेव महागिरी) जैसे वायु के झोंके से महापर्वत नहीं डिगता है। भावार्थ भावमार्ग ग्रहण करने के बाद व्रतग्रहण किये हुए उस साधु को ना ना प्रकार के अनुकूल-प्रतिकूल परीषह या उपसर्ग स्पर्श करें, तब साधु उन्हें देखकर अपने संयम से उसी प्रकार विचलित न हो जैसे हवा से बड़ा पहाड़ नहीं डिगता। व्याख्या भावमार्ग से विचलित न हो इस गाथा में शास्त्रकार साधु को अपने कर्तव्य के विषय में सावधान करते हैं कि साधु एक बार भावमार्ग को ग्रहण करने के पश्चात् चाहे कितने ही अनुकलप्रतिकूल या सम-विषम परीषह या उपसर्ग क्यों न आएँ, उस मार्ग से जरा भी विचलित न हो, वह अपने पैर उस भावमार्ग (संयम) पर मजबूती से जमाए रखे । जिस प्रकार आँधी या झंझावात के कितने ही झौंके आने पर महापर्वत बिलकुल अडिग एवं अडोल रहता है, वैसे ही साधु परीषहों या उपसर्गों के झोंके आने पर अपने भावमार्ग से जरा भी डिगे नहीं, अचल-अटल रहे। कोई कह सकता है कि वर्तमानकाल के अल्पसत्त्व साधक इतने कठोर परीपहों एवं घोर उपसर्गों के समय बिलकुल अडोल या अटल-अचल कैसे रह सकते हैं ? इसके समाधान के लिए वृत्तिकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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