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मार्ग : एकादश अध्ययन
लगाए, किन्तु तपस्या के उत्कर्ष को पाकर वह किसी पर कोप न बरसाए और न ही अभिमान प्रगट करे। ये सब उपाय साधुधर्म से मोक्ष तक दौड़ लगाकर मोक्ष पाने के हैं।
मल पाठ जे य बुद्धा अतिक्कता, जे य बुद्धा अणागया । संति तेसि पइट्ठाणं, भूयाणं जगती जहा ॥३६॥
संस्कृत छाया ये च बुद्धा अतिक्रान्ता, ये च बुद्धा अनागताः । शान्तिस्तेषां प्रतिष्ठानं भूतानां जगति तथा ॥३६।।
अन्वयार्थ (जे य बुद्धा अतिक्ता ) जो तीर्थकर भूतकाल में हो चुके हैं, (जे य बुद्धा अणागया) और जो तीर्थंकर भविष्य में होंगे (तेसिं संति पइट्ठाणं) उनकी साधना का आधार शान्ति है, (जहा भूयाणं जगती) जैसे प्राणियों का आधार पृथ्वी है।
भावार्थ जो तीर्थंकर अतीत में हो चुके हैं और जो तीर्थंकर भविष्य में होंगे, उन सबका आधार शान्ति है, जैसे समस्त प्राणियों का आधार पृथ्वी है।
व्याख्या
शान्तिरूप भावमार्ग ही समस्त तीर्थंकरों का आधार इस गाथा में शान्तिरूप भावमार्ग को भूत-भविष्यकालीन समस्त तीर्थंकरों का आधार बताया है।
प्रश्न होता है कि इस प्रकार के शान्तिरूप भावमार्ग का उपदेश केवल भगवान् महावीर ने ही दिया है या अन्य तीर्थंकरों ने भी दिया था या देंगे ? इसके समाधानार्थ शास्त्रकार कहते हैं .. 'जे य बुद्धासंति तेसिं पइट्ठाणं' आशय यह है कि ऋषभदेव आदि जितने भी तीर्थकर भूतकाल हो चुके हैं, एवं पद्मनाभ आदि जो तीर्थंकर भविष्यकाल में होंगे; अतीत और अनागत काल के ग्रहण से वर्तमानकाल का भी ग्रहण हो जाने से वर्तमानकाल में महाविदेहक्षेत्र में सीमन्धरस्वामी आदि जो तीर्थंकर विद्यमान हैं, उन सबका आधार शान्ति है । अर्थात् उनके उपदेशों एवं साधना का सर्वाधार शान्ति रही है और रहेगी। शान्ति कहते हैं--- कषायों के नाश को। कपायनाशरूप शान्ति की साधना या, इसके उपदेश का आधार लिये बिना मोक्षमार्ग पर चलने की यात्रा आगे चल नहीं सकती, इसलिए त्रैकालिक तीर्थंकरों के जीवन का मूलाधार शान्ति ही रहा है, जो भावमार्ग है । अथवा षटकाय के जीवों की रक्षारूप अहिंसा का नाम शान्ति है। इसके बिना बुद्धत्व-ज्ञानीपन नहीं हो सकता।
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