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व्याख्या
मुनि साधुधर्म से मोक्ष तक की दौड़ लगाए
इन चार गाथाओं में शास्त्रकार ने साधु को श्रमणधर्म पर चलकर मोक्ष प्राप्त करने के कुछ अकसीर उपाय बताए हैं। साथ ही, साधु को किन-किन बातों से बचकर चलना चाहिए ? इसका भी संक्षेप में संकेत किया है ।
बत्तीसवीं गाथा में शास्त्रकार ने खास बात कह दी है कि साधक श्रमण भगवान् महावीर द्वारा प्ररूपित साधुधर्म को स्वीकार करके इधर-उधर संसार की भोग - वासनामय गलियों न झाँके । अगर संसार की ओर झाँकेगा, या संसार के प्रपंचों में रुचि लेगा तो फँस जाएगा । इसीलिए शास्त्रकार कहते हैं -- 'तरे सोयं महाघोरं ।' आशय यह है कि संसार महाभय-दायक है, दुस्तर है, इसमें रहने वाले प्राणी एक जन्म से दूसरे जन्म में, एक गर्भ से दूसरे गर्भ में और एक मरण से दूसरे मरण में, एक दु:ख से दूसरे दु:क्ष में जाते हुए अरहटयंत्र की तरह अनन्तकाल तक संसार में भटकते रहते हैं । संसारसागर से अपनी आत्मा को बचाने के लिए जीव को भगवान महावीर द्वारा उपदिष्ट शुद्धधर्म (साधुधर्म ) को स्वीकार करके उसी पर सरपट चलना चाहिए। कहीं-कहीं उत्तरार्ध का पाठ इस प्रकार मिलता है - 'कुज्जा भिक्खू गिलाणस्स अगिलाए समाहिए' साधु रुग्ण साधु की सेवा (वैयावृत्य) अग्लान एवं प्रसन्नचित्त होकर करे अथवा साधु रोगी साधु को समाधि एवं आरोग्य प्राप्त कराने हेतु उसकी सेवा करें ।
२३वीं गाथा में बताया गया है कि साधुधर्म पर दृढ़ रहने के लिए साधु को इन्द्रियों के लुभावने विषयों से दूर रहना चाहिए । अगर वह इन्द्रियविषयों में आसक्त होने लगेगा तो वहीं फँस जायगा, उसकी संयम - यात्रा ठप्प हो जाएगी, मोक्ष तक वह पहुँच नहीं सकेगा । साथ ही साधु को मोक्षमार्ग पर यात्रा करते समय संसार के समस्त प्राणियों को आत्मवत् मानकर चलना चाहिए, तभी उसकी यात्रा सुखद, सरल और निर्द्वन्द्व हो सकेगी। अन्यथा, वह पद-पद पर अगर प्राणियों से उलझता रहेगा, संघर्ष करता रहेगा या दूसरों का उत्पीड़न करता हुआ चलेगा, तो उसकी शान्ति, समाधि सब हवा हो जायगी । इसलिए शास्त्रकार स्पष्ट कहते हैं'थामं कुव्वं परिव्वए' अर्थात् साधु उत्साहपूर्वक या साहस के साथ मोक्षपथ पर दौड़ लगाए । आगे की ३४वीं ३५वीं गाथा में स्पष्ट बताया है कि साधु क्रोध, मान, माया और लोभ आदि समस्त आत्मवाह्यभावों - परभावों को दूर खदेड़ कर एकमात्र मोक्ष की साधना में लगे, अपने अन्दर रहे हुए बुरे पापमय स्वभाव को तिलांजलि देकर साधुधर्म के साथ मन-वचन काया से अपना सम्बन्ध जोड़े । तभी वह मोक्ष तक आसानी से और शीघ्रता से पहुँच सकता है । तथा साधु मोक्षमार्ग पर यात्रा करते समय शरीर पर ममत्व न रखकर अधिकांश शक्ति तपश्चर्या में
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सूत्रकृताग सूत्र
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