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मार्ग : एकादश अध्ययन
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जहा आसाविणि नावं, जाइअंधो दुरूहिया । इच्छई पारमागंतु, अंतरा य विसीयइ ॥३०॥ एवं तु समणा एगे मिच्छदिट्ठी अणारिया । सोयं कसिणमावन्ना आगंतारो महब्भयं ॥३१॥
संस्कृत छाया ते च बीजोदकं चैव, तमुद्दिश्य च यत्कृतम् । भक्त्वा ध्यानं ध्यायन्ति, अखेदज्ञा असमाहिताः ।।२६।। यथा ढंकाश्च, कंकाश्च, कूररा मद्गुकाः सिधाः। मत्स्यैषणं ध्यायन्ति, ध्यानं तत् कलुषाधमम् ।.२७।। एवं तु श्रमणा एके, मिथ्यादृष्टयोऽनार्याः । विषयैषणं ध्यायन्ति, कंका इव कलुषाधमाः ॥२८॥ शुद्ध मार्ग विराध्य, इहैके तु दुर्मतयः उन्मार्गगता: दुःखं घातमेष्यन्ति तत्तथा ॥२६॥ यथाऽऽस्राविणी नावं जात्यन्धो दुरुह्य । इच्छति पारमागन्तुमन्तरा च विषीदति
॥३०॥ एवं तु श्रमणा एके मिथ्यादृष्टयोऽनार्याः स्रोतः कृत्स्नमापन्ना आगन्तारो महाभयम् ॥३१॥
अन्वयार्थ (ते य बीयोदगं चेव) वे (अन्यतीथिक) सचित्त बीज और जल (कच्चा) तथा (तमुद्दिसा य जं कडं) उनके लिए जो आहार बनाया गया है, (भोच्चा) उसका उपभोग करते हुए (झाणं झियायंति) आर्तध्यान करते हैं। (अखेयना असमाहिया) वे उन प्राणियों के खेद (पीड़ा) से अनभिज्ञ अथवा धर्मज्ञान से रहित तथा समाधि से हीन हैं ॥२६॥
(जहा ढंका य कंका य कुलला मग्गुका सिही) जैसे ढंक, कंक, कुरर, जलमुर्गे और शिखी नामक जलचर पक्षी (मच्छेसणं झियायंति) मछली को पकड़कर गटकने के बुरे विचार (कुध्यान) में रत रहते हैं, (झाणं ते कलुसाधमं) उनका वह ध्यान मत्स्यवधरूप सावधव्यापारमय होने से पापरूप व अधम होता है। (एवं तु) इसी तरह (मिच्छविट्ठी अणारिया एगे सपणा) मिथ्यादृष्टि, अनार्य कुछ तथाकथित श्रमण (विसएसणं झियायंति) विषयों की तलाश (प्राप्ति) का ही ध्यान करते हैं, (ते कंका वा कलुसाहमा) वे ढंक, कंक आदि पक्षियों की तरह पापी एवं अधम हैं ॥२७-२८॥
(इह) इस जगत् में (एगे उ दुम्मई) कई दुर्बुद्धि पुरुष (सुद्ध मग्गं) शुद्ध
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