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मार्ग : एकादश अध्ययन
और जो आस्रवों से रहित साधक है, वही परिपूर्ण, अनुपम, शुद्ध धर्म का उपदेश करता है।
व्याख्या
परिपूर्ण, अनुपम, शुद्धधर्म का उपदेशक इस गाथा में यह बताते हैं कि मोक्षमार्ग के सन्दर्भ में शुद्धधर्म का उपदेशक कौन और किस प्रकार के गुणों और योग्यता से विभूषित होता है ? मोक्ष में परम सहायक एवं मार्गरूप शुद्धधर्म के उपदेशक के लिए यहाँ चार विशेषण प्रयुक्त किये गये हैं ---आत्मगुप्त, सदैव दान्त, छितमोत और अनास्रव । यह एक जाना-माना हुआ तथ्य है कि जो व्यक्ति मोक्ष की ओर जाते समय मार्ग में जो भी विघ्न-बाधाएँ, संकट आदि को पार कर चुका हो, बाधक तत्त्वों को परास्त कर चुका हो और उस मार्ग में आगे बढ़ा हुआ अनुभवी हो, वही मोक्ष के लिए परम सहायक शुद्धधर्म का उपदेश जिज्ञासुओं या मुमुक्षुओं को कर सकता है । जिसने अभी मोक्ष का रास्ता ही नहीं देखा, जो अभी संसारसागर में ही गोते खा रहा है, जिसने धर्म का क, ख, ग भी नहीं सीखा, और न संसार के स्रोतों या कर्मों के आगमन के द्वारों को बन्द किया है, और न ही धर्म के विपक्षी अधर्म या पाप से अपनी आत्मा को बचाने का अभ्यास किया है, वह दूसरों को केवल पोथियों के सहारे शुद्धधर्म कैसे बता सकता है। जिसने अन्दर गोता लगाया नहीं, केवल जलाशय के किनारे खड़ा-खड़ा गाल बजा रहा है कि नदी में ऐसे क दा जाता है, ऐसे तैरा जाता है, क्या उस अनुभवहीन व्यक्ति का तैरने का उपदेश यथार्थ हो सकता है ? कदापि नहीं । इसी बात को लेकर शास्त्रकार शुद्ध धर्मोपदेशक की योग्यता के लिए ४ बातें बताते हैं--(१) जिसकी आत्मा मन-वचन-काया से पापों से रक्षित (गुप्त) है, (२) जिसने इन्द्रियों और मन पर काबू कर लिया है, (३) जिसने संसार के स्रोतरूप मिथ्यात्वादि बन्धनों को काट दिया है, (४) और कर्मों के प्रवेश द्वारों को जिसने बन्द कर दिया है, वही महापुरुष ऐसे अनुपम, सांगोपांग एवं शुद्ध धर्म का प्रतिपादन कर सकता है, अनुभवहीन एवं अयोग्य व्यक्ति धर्म और मोक्ष के नाम से सब्जबाग दिखाकर या ऊटपटांग बातें करके दुनिया को अधर्म के गर्त में ही धकेलने का प्रयास करेगा।
मूल पाठ तमेव अविजाणंता अबुद्धा बुद्धमाणिणो । बुद्धा मोत्ति य मन्नता, अंते एए समाहिए ॥२५॥
संस्कृत छाया तमेवाविजानाना अबुद्धा बुद्धमानिनः । बुद्धाः स्मेति च मन्यमानाः अन्ते एते समाधेः ।।२५।।
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