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सूत्रकृतांग सूत्र
भयभीत नहीं होते, और न वह जन्म-जन्मान्तर में भी किसी से डरता है, तथा मोक्ष का प्रधान मार्ग अहिंसा का आचरण होने से इसे ही मोक्ष कहा गया है ।
मूल पाठ
पभु दोसे निराकिच्चा, ण विरुज्भेज्ज केणई । मणसा वयसा चेव, कायसा चेव अंतसो
।।१२।।
संस्कृत छाया
प्रभुर्दोषं निराकृत्य, न विरुध्येत केनचित् । मनसा वचसा चैव, कायेनैव चैवान्तशः ॥ १२॥ अन्वयार्थ
( पभूदोसे निराकिच्चा) इन्द्रियविजेता पुरुष दोषों को हटाकर ( केणई मणसा वयसा कायसा अंतसो ण विरुज्झेज्ज) जीवनपर्यन्त मन, वचन, काया से किसी के साथ वैर-विरोध न करे ।
भावार्थ
जितेन्द्रिय पुरुष अपने जीवन में आए हुए दोषों को चुन-चुन कर बाहर निकाल दे और किसी के साथ मन-वचन-काया से जीवन-भर वैरविरोध न करे ।
व्याख्या
मोक्षमार्ग पर चलने के लिए दोषों और विरोध से निवृत्ति आवश्यक
मोक्ष के आग्नेय पथ पर चलने के लिए आत्मा निर्मल, पवित्र, निश्चिन्त और हल्की-फुलकी होनी चाहिए। और वह तभी हो सकती है, जब वह इन्द्रियों पर विजयी बनकर -- उन्हें अपने वश में करके समस्त दोषों (चाहे वे मन के हों, चाहे वचन के और चाहे काया के हों; मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योगरूप भूलों, अपराधों, गलतियों एवं बुराइयों से, या दुर्व्यसनों) से बिलकुल निवृत्त हो । साथ ही वह मन-वचन-काया से आजीवन किसी के साथ वैर-विरोध न करे । वैरविरोध तभी होता है, जब व्यक्ति हिंसा, झूठ, चोरी, परिग्रह आदि पापों से लिपटा रहे । अतः पापों और दोषों से सर्वथा दूर रहने से ही जितेन्द्रिय साधक मोक्षमार्ग पर चलने के योग्य बनता है ।
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मूल पाठ
संडे से महान धीरे दत्त सणं चरे । सणास मिए णिच्चं वज्जयंते असणं ॥१३॥
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