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________________ ८२६ सूत्रकृतांग सूत्र भयभीत नहीं होते, और न वह जन्म-जन्मान्तर में भी किसी से डरता है, तथा मोक्ष का प्रधान मार्ग अहिंसा का आचरण होने से इसे ही मोक्ष कहा गया है । मूल पाठ पभु दोसे निराकिच्चा, ण विरुज्भेज्ज केणई । मणसा वयसा चेव, कायसा चेव अंतसो ।।१२।। संस्कृत छाया प्रभुर्दोषं निराकृत्य, न विरुध्येत केनचित् । मनसा वचसा चैव, कायेनैव चैवान्तशः ॥ १२॥ अन्वयार्थ ( पभूदोसे निराकिच्चा) इन्द्रियविजेता पुरुष दोषों को हटाकर ( केणई मणसा वयसा कायसा अंतसो ण विरुज्झेज्ज) जीवनपर्यन्त मन, वचन, काया से किसी के साथ वैर-विरोध न करे । भावार्थ जितेन्द्रिय पुरुष अपने जीवन में आए हुए दोषों को चुन-चुन कर बाहर निकाल दे और किसी के साथ मन-वचन-काया से जीवन-भर वैरविरोध न करे । व्याख्या मोक्षमार्ग पर चलने के लिए दोषों और विरोध से निवृत्ति आवश्यक मोक्ष के आग्नेय पथ पर चलने के लिए आत्मा निर्मल, पवित्र, निश्चिन्त और हल्की-फुलकी होनी चाहिए। और वह तभी हो सकती है, जब वह इन्द्रियों पर विजयी बनकर -- उन्हें अपने वश में करके समस्त दोषों (चाहे वे मन के हों, चाहे वचन के और चाहे काया के हों; मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योगरूप भूलों, अपराधों, गलतियों एवं बुराइयों से, या दुर्व्यसनों) से बिलकुल निवृत्त हो । साथ ही वह मन-वचन-काया से आजीवन किसी के साथ वैर-विरोध न करे । वैरविरोध तभी होता है, जब व्यक्ति हिंसा, झूठ, चोरी, परिग्रह आदि पापों से लिपटा रहे । अतः पापों और दोषों से सर्वथा दूर रहने से ही जितेन्द्रिय साधक मोक्षमार्ग पर चलने के योग्य बनता है । Jain Education International मूल पाठ संडे से महान धीरे दत्त सणं चरे । सणास मिए णिच्चं वज्जयंते असणं ॥१३॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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