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मार्ग : एकादश अध्ययन
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संस्कृत छाया यदि नः केऽपि पृच्छेयुर्देवा अथवा मानुषाः । तेषां तु कतरं मार्गमाख्यास्ये ? कथय नः ।।३।।
अन्वयार्थ (जइ केइ देवा अदुव माणुसा णो पुच्छिज्जा) यदि कोई देवता या मनुष्य हमसे पूछे तो (तेसि तु कयरं मग्गं आइक्खेज्ज) उनको हम कौन-सा मार्ग बताएँ ? (कहाहि णो) यह हमें आप बताइए ।
भावार्थ श्री जम्बूस्वामी फिर श्री सुधर्मास्वामी से पूछते हैं---यदि कोई देवता या मनुष्य हमसे मोक्षमार्ग के सम्बन्ध में पूछे तो हम उन्हें कौन-सा मार्ग बताएँ ? कृपया, यह हमें बताइए।
व्याख्या
कौन-सा मोक्षमार्ग बताएं ? फिर श्री जम्बूस्वामी ने जिज्ञासा प्रकट की है कि यह ठीक है कि हम तो आपके असाधारण गुणों को जानने के कारण आपको विश्वस्त एवं आप्त मानकर उस मार्ग को मान लेते हैं किन्तु संसार से घबराये हुए सरलात्मा कोई चारनिकाय वाले देव या मनुष्य हमसे उस सम्यक् मार्ग के सम्बन्ध में विशेष विस्तार से पूछे तो हमें उन्हें क्या बताना चाहिए ? प्रश्न देवता और मनुष्य ही कर सकते हैं, इसलिए उन्हीं का उल्लेख किया गया, दूसरे प्राणियों का नहीं ।
मूल पाठ जइ वो केइ पुच्छिज्जा, देवा अदुव माणुसा । तेसिमं पडिसाहिज्जा, मग्गसारं सुणेह मे ॥४॥
संस्कृत छाया यदि वः केऽपि पृच्छेयुर्देवा अथवा मानुषाः । तेषामिमं प्रतिसाधयेन्, मार्गसारं शृणुत मे ॥४॥
अन्वयार्थ (जइ केइ देवा अदुव माणुसा वो पुच्छिज्जा) यदि कोई देवता अथवा मनुष्य आपसे पूछे तो (तेसिमं पडिसाहिज्जा) उन्हें यह (आगे कहा जाने वाला) मार्गसम्बन्धित प्रत्युत्तर देना चाहिए। (मगसारं मे सुणेह) वह साररूप मार्ग मुझसे सुनो।
भावार्थ श्री सुधर्मास्वामी श्री जम्बूस्वामी से कहते हैं -यदि कोई देवता या
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