________________
८२०
सूत्रकृतांग सूत्र मनुष्य आपसे मोक्षमार्ग के सम्बन्ध में पूछे तो उन्हें आगे कहा जाने वाला यह मार्गसम्बन्धी प्रत्युत्तर देना चाहिए। उस सारभूत मार्ग को तुम मुझसे सुन लो।
व्याख्या
उन्हें यह मार्ग बताना !
श्री सुधर्मास्वामी द्वारा दिया गया उत्तर इस गाथा में अंकित है । उन्होंने अपने शिष्य श्री जम्बूस्वामी से कहा कि संसार-भय से उद्विग्न कोई देव या मनुष्य इस सम्यक् मार्ग के विषय में तुम से पूछ तो तुम उन्हें वही मार्ग बताना जो मार्ग आगे मैं तुम्हें बता रहा हूँ। कहीं-कहीं 'तेसि तु इमं मग्गं आइक्खेज्ज सुणेह मे' यह पाठान्तर मिलता है, जिसका अर्थ है- उनसे तुम आगे कहे जाने वाले (इस) मार्ग का कथन करना । वह मार्ग मैं तुम्हें बताता हूँ।
मल पाठ आणुपुव्वेण महाघोरं, कासवेण पवेइयं । जमादाय इओ पुव्वं, समुद्द ववहारिणो ॥५॥
संस्कृत छाया आनुपूर्व्या महाघोरं, काश्यपेन प्रवेदितम् । यमादायेतः पूर्व, समुद्र व्यवहारिणः ॥५॥
___अन्वयार्थ
(कासवेण पवेइयं महाघोरं) काश्यपगोत्रीय भगवान् महावीर स्वामी द्वारा प्रतिपादित उस अति कठिन मार्ग को (आणुपुटवेण) मैं क्रमशः बताता हूँ। (समुद्द ववहारिणो) जैसे विदेश में व्यापार करने वाले व्यक्ति ससुद्र को पार करते हैं, इसी तरह (इओ पुव्वं जमादाय) इस मार्ग का आश्रय लेकर आज से पहले बहत-से लोग संसार-सागर को पार कर चुके है।
भावार्थ श्री सुधर्मास्वामी अपने शिष्यवर्ग से कहते हैं--काश्यपगोत्रीय भगवान् महावीर (सर्वज्ञ) के द्वारा प्रकाशित मार्ग को, जो कि अत्यन्त कठोर है, क्रमशः बताता हूँ । जैसे समुद्रमार्ग से व्यापार करने वाले व्यापारी समुद्र को पार करते हैं, वैसे ही इस मार्ग को ग्रहण करके इससे पूर्व बहुत-से जीवों ने संसार-समुद्र को पार कर लिया है।
व्याख्या सर्वज्ञ महावीरकथित मार्ग का माहात्म्य
___इस गाथा में भगवान महावीर-प्रतिपादित मार्ग का माहात्म्य बताया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org