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सूत्रकृतांग सूत्र
मूल पाठ तं मग्गं णत्तरं सुद्ध', सव्वदुक्ख विमोक्खणं । जाणासि णं जहा भिक्खू !, तं णो बूहि महामुणी ॥२॥
संस्कृत छाया तं मार्गमनुत्तरं शुद्ध, सर्वदुःखविमोक्षणम् । जानासि वै यथा भिक्षो !, तं नो ब्रू हि महामुने ॥२॥
अन्वयार्थ (भिक्खू महामुणी) हे भिक्षाजीवी महामुने ! (सव्वदुक्खविमोक्खणं सुद्ध गुत्तरं तं मग्गं) समस्त दुःखों से छुड़ाने वाले शुद्ध और सर्वश्रेष्ठ उस मार्ग को (जहा णं जाणासि) आप जैसे जानते हैं, (तं णो बूहि) वह हमें बताइए ।
भावार्थ श्री जम्बूस्वामी श्रीसुधर्मास्वामी से पूछते हैं --हे भिक्षो महामुने ! सब दुःखों से मुक्त करने वाले, शुद्ध तथा सर्वश्रेष्ठ तीर्थंकरोक्त मार्ग को आप जिस प्रकार जानते हैं, वह हमें बताइए।
व्याख्या सर्वदुःखमोक्षक शुद्ध श्रेष्ठ मार्ग के स्वरूप को जिज्ञासा
इस गाथा में फिर सुधर्मास्वामी से उन्हीं प्रश्नकर्ता ने मार्ग के विषय में पूछा है । मार्ग के यहाँ तीन विशेषण प्रयुक्त किये गए हैं-'सव्वदुःखविमोक्खणं, सुद्ध', णत्तरं ।' सर्वदुःख विमोक्षण का अर्थ है--चिरकालसंचित एवं दु:ख के कारणभूत जो कर्म हैं, जो वास्तव में दुःखरूप हैं, उन सब दुःखरूप कर्मों से विमुक्त कराने वाला। शुद्ध इसलिए कहा कि यह निर्दोष है, इसमें पाप या सावद्य अनुष्ठान के उपदेश की मिलावट नहीं है, पूर्वापरविरुद्ध कथन नहीं है तथा एकमात्र जीवों के कल्याण का सरल पथ है, वक्रतारहित है। अनुत्तर इसलिए कहा है कि इससे बढ़कर श्रेष्ठ और सम्पूर्ण भावमार्ग विश्व में और कोई नहीं है। वास्तव में यही मार्ग वह मार्ग है, जिसके विषय में श्री जम्बूस्वामी ने जिज्ञासा प्रकट करके सविनय निवेदन किया है कि आपने उस मार्ग को जैसा जाना-देखा-अनुभव किया है, उस तरह से हमें भी उसका स्वरूप बताइये।
मूल पाठ जइ णो केइ पुच्छिज्जा, देवा अदुव माणुसा । तेसि तु कयरं मग्गं, आइक्खेज्ज ? कहाहि णो ॥३॥
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