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मार्ग : एकादश अध्ययन
(१३) शिव (मोक्षपद प्राप्त कराने वाला शैलेशी अवस्था की प्राप्तिरूप चतुर्दश
गुणस्थानरूप ) 1
ये सभी मोक्षमार्ग के पर्यायवाची शब्द होने से एकार्थक हैं । अब इस अध्ययन की क्रम से प्राप्त प्रथम गाथा इस प्रकार
मूल पाठ
करे मग्गे अक्खाए, माहणं मतिमता ? । जं मग्गं उज्ज पावित्ता, ओहं तरति दुत्तरं ||१|| ॥१॥ संस्कृत छाया
कतरो मार्ग आख्यातो, माहनेन मतिमता । यं मार्गमृजुं प्राप्य, ओघं तरति दुस्तरम् ॥१॥ अन्वयार्थ
( मतिमता माहणेणं कयरे मग्गे अक्खाए ? ) अहिंसा के परम उपदेशक केवलज्ञानसम्पन्न भगवान् महावीर स्वामी ने कौन-सा मोक्ष का मार्ग बताया है ? ( जं उज्जुं मग्गं पावित्ता दुत्तरं ओहं तरति ) जिस सरल मार्ग को पाकर दुस्तर संसार को मनुष्य पार करता है ।
भावार्थ
अहिंसा के उपदेशक सर्वज्ञ केवलज्ञानसम्पन्न भगवान महावीर स्वामी ने कौन-सा मोक्ष का मार्ग कहा था, जिस सरल मार्ग को पाकर जीव संसारसागर से पार हो जाता है ?
व्याख्या
एक प्रश्न कौन-सा मोक्षमार्ग ? इस गाथा में जम्बूस्वामी श्री सुधर्मास्वामी ( गणवर) से पूछते हैं---भगवन् ! तीन लोक का उद्धार करने में समर्थ, सबके एकान्त हितैषी तथा जीवहिंसा न करने का उपदेश करने वाले तीर्थंकर भगवान महावीर ने तीन लोक में मोक्ष प्रदान करने में समर्थ मार्ग कौन-सा कहा है ? जो लोकालोक में स्थित सूक्ष्म, व्यवहित, दूर, भूत, भविष्य और वर्तमान समी पदार्थों को प्रकाशित करती है, उसे मति कहते हैं, वह केवलज्ञान ही है, वह भगवान् में विद्यमान है, इसलिए वे मतिमान हैं । ऐसे भगवान् द्वारा प्रतिपादित जो मार्ग है, वह मोक्षमार्ग, प्रशस्त भावमार्ग है, वह वस्तु का यथार्थ - स्वरूप बताने के कारण सरल मार्ग है। यही नहीं, जो वस्तु को स्याद्वाद शैली में सामान्य विशेषरूप या नित्यानित्यरूप बताने के कारण अतिसरलतम मार्ग है, वक्र नहीं है । उसे पाने पर संसारी जीव को दुस्तर संसारसागर पार करना कठिन नहीं है । किन्तु मोक्ष की समग्र सामग्री पाना ही कठिन है । यही इस गाथा का आशय है ।
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