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मार्ग : एकादश अध्ययन
८१५ जाते हैं), छत्रमार्ग (छतरी के द्वारा जो मार्ग तय किया जाए), जलमार्ग (नौका आदि द्वारा पार किया जाने वाला), आकाशमार्ग (विमान आदि से तय किया जाने वाला मार्ग) आदि प्रकार हैं। ये सब द्रव्यमार्ग हैं। इस अध्ययन में इस मार्ग का वर्णन नहीं है।
क्षेत्रमार्ग - जो मार्ग ग्राम, नगर तथा जिस प्रदेश में या जिस शालिक्षेत्र आदि में जाता है, वह अथवा जिस क्षेत्र में मार्ग की व्याख्या की जाती है, वह क्षेत्रमार्ग है। इसी तरह कालमार्ग के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए।
___ भावमार्ग-दो प्रकार का है----प्रशस्त और अप्रशस्त । दोनों ही भावमार्गों के प्रत्येक के तीन-तीन भेद होते हैं। मिथ्याव, अविरति और अज्ञान, ये अप्रशस्त भावमार्ग हैं, जबकि सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र ये प्रशस्त भावमार्ग हैं। प्रशस्त भावमार्ग का फल सुगति है और अप्रशस्त भावमार्ग का फल दुर्गति है। इस अध्ययन में सुगतिरूप फलदायक प्रशस्त भावमार्ग का ही वर्णन है । दुर्गतिफलदायक अप्रशस्तमार्ग को बताने वाले प्रावादुकों के ३६ ३ भेद हैं, जिन्हें नियुक्तिकार एक गाथा द्वारा बताते हैं -
असियसयं किरियाणं, अकिरियवाईण होई चूलसीई।
अण्णाणिय सत्तट्ठी, वेण इयाणं च बत्तीसं अर्थात-क्रियावादियों के १८०, अक्रियावादियों के ८४, अज्ञानिकों के ६७ और विनयवादियों के ३२ भेद हैं। कुल मिलाकर सब ३६३ भेद हैं। समवसरणअध्ययन में इनका स्वरूप बताया जाएगा।
चौभंगी की दृष्टि से भावमार्ग का निरूपण क्षेम, अक्षेम, क्षेमरूप और अक्षेमरूप-यों मार्ग के ४ विकल्प (भंग) होते हैं । पहला मार्ग क्षेम है, क्योंकि उसमें चोर, सिंह, व्याघ्र आदि का उपद्रव नहीं है, और क्षेमरूप भी है, क्योंकि वह सम है, तथा छाया, फल, फूल, जलाशय आदि से पूर्ण है। दूसरा मार्ग क्षेम तो अवश्य है, क्योंकि उसमें चोर आदि का उपद्रव नहीं है किन्तु क्षेमरूप नहीं है, क्योंकि उसमें जगह-जगह कांटे, कंकर, गड्ढे, पहाड़, ऊबड़-खाबड़ रास्ते आदि हैं । तीसरा मार्ग क्षेम तो नहीं है, क्योंकि उसमें चोर आदि का उपद्रव है, किन्तु क्षेमरूप है, क्योंकि वह सम है, कांटे, कंकड़, पत्थर आदि नहीं हैं। चौथा मार्ग न तो क्षेम है, न क्षेमरूप ही है। क्योंकि इस मार्ग में दोनों प्रकार की सुविधाएँ नहीं है।
___ इसी प्रकार भावमार्ग के सम्बन्ध में भी चार भंग (विकल्प) होते हैं। चारों मार्ग पर चलने वाले संयमपथिक की दृष्टि से घटित होते हैं- (१) जो संयमपथिक ज्ञानादि मार्ग से युक्त हैं, द्रव्यलिंग से भी युक्त हैं, वह क्षेम तथा क्षेमरूप होने से प्रथम भंग का स्वामी है, (२) जो संयमपथिक ज्ञानादि मार्गों (गुणों) से तो युक्त है,
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