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मार्ग : एकादश अध्ययन
अध्ययन का संक्षिप्त परिचय
दसवें अध्ययन की व्याख्या की जा चुकी है। अब ग्यारहवाँ अध्ययन प्रारम्भ किया जाता है । दसवें अध्ययन में भाव -समाधि का निरूपण किया गया है, जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र तथा तपरूप है, और इस अध्ययन में वर्णित भावमार्ग भी यही है ।
इस अध्ययन का नाम 'मार्ग' है । यहाँ प्रशस्तज्ञान आदि भावमार्ग के आचरण का वर्णन है । इस अध्ययन का विषय समाधि नामक दसवें अध्ययन से मिलता-जुलता है । इसमें उसी प्रशस्त भावमार्ग का विवेचन किया गया है, जिससे आत्मा को समाधि प्राप्त हो । ऐसा मार्ग -- ज्ञानमार्ग, दर्शनमार्ग, चारित्रमार्ग या तपोमार्ग कहलाता है । संक्षेप में इसे संयममार्ग या मोक्षमार्ग अथवा सदाचारमार्ग भी कहा जा सकता है । इस पूरे अध्ययन में आहारशुद्धि, सदाचार, संयम, प्राणातिपातविरमण आदि पर प्रकाश डाला गया है और कहा गया है कि प्राणों की परवाह किए बिना इन सबका पालन करना चाहिए । कुछ प्रवृत्तियों के विषय में साधु को तटस्थ रहने का उपदेश दिया गया है ।
निक्षेप की दृष्टि से 'मार्ग' का विवेचन
नियुक्तिकार ने मार्ग के नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव यों ६
ज्ञशरीर - भव्यशरीर से
रास्ता ), लता मार्ग
निक्षेप किये हैं । उनमें नाम और स्थापना तो सुगम है । व्यतिरिक्त द्रव्यमार्ग के फलकमार्ग ( तख्ते बिछाकर बनाया हुआ ( बेल को पकड़कर पार किया जाने वाला मार्ग ), आन्दोलनमार्ग, ( झूले में बैठकर पार किया जाने वाला पथ ), वेत्रमार्ग ( बेंत की लता को पकड़कर पार किया जाने वाला नदी पथ), रज्जुमार्ग (रस्सी के सहारे से ऊँचे स्थान पर चढ़ा जाने वाला पथ), दवनमार्ग ( किसी सवारी द्वारा चलकर जाने वाला मार्ग), कीलमार्ग ( ठुकी हुई कील के संकेत से तय किया जाने वाला मार्ग), विलमार्ग ( गुफा के आकार के बने हुए रास्ते से जाने वाला), अजादिमार्ग ( बकरे, ऊँट आदि पर चढ़कर तय किया जाने वाला), पक्षिमार्ग ( भारंड, गरुड़ आदि पक्षी पर बैठकर जिस मार्ग से दूसरे देश में
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