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________________ समाधि: दशम अध्ययन ८११ मूल पाठ सुद्ध सिया जाए न दूसएज्जा, अमुच्छिए ण य अज्झोववन्ने । धितिमं विमुक्के ण य पूयणट्ठी,न सिलोयगामी य परिव्वएज्जा॥२३॥ __ संस्कृत छाया शुद्ध स्याज्जाते न दूषयेत् अमूच्छितो न चाध्युपपन्नः । धृतिमान् विमुक्तो न च पूजनार्थी, न श्लोककामी च परिव्रजेत् ।।२३॥ ___ अन्वयार्थ (सिया सुद्ध जाए न दूसएज्जा) उद्गमादि-दोषरहित शुद्ध आहार मिलने पर साधु राग-द्वेष करके चारित्र को दूषित न करे। (अमुच्छिए ण य अज्झोक्वन्ने) तथा उस आहार में मूच्छित होकर बार-बार उसकी लालसा न रखे । (धितिमं विमुक्के) साधु धृतिमान और बाह्य-आभ्यन्तर परिग्रह से मुक्त बने । (ण य पूयणट्ठी न य सिलोयगामी) साधु अपनी पूजा-प्रतिष्ठा और कीर्ति की कामना न करे। (परिव्वएज्जा) किन्तु शुद्ध संयम-पालन में उद्यत रहे । भावार्थ उद्गमादि दोष से रहित शुद्ध आहार प्राप्त होने पर साधु राग-द्वेषयुक्त होकर चारित्र को दूषित न करे। तथा उत्तम आहार में मूच्छित न हो और न ही बार-बार वैसे आहार की लालसा रखे। साधु धैर्यवान और बाह्याभ्यन्तर परिग्रह से मुक्त होकर रहे; तथा वह अपनी पूजा-प्रतिष्ठा और कीति की अभिलाषा न रखते हुए शुद्ध संयम का पालन करे । व्याख्या ___ आचारसमाधि के लिए क्या हेय उपादेय ? साधु को आचारसमाधि के लिए कुछ बातें त्याज्य समझनी चाहिए और कुछ उपादेय। (१) यदि निर्दोष आहार प्राप्त हुआ हो तो उस आहार का सेवन करते समय राग-द्वष न करे, क्योंकि मनोज्ञ आहार के प्रति आसक्ति होगी, और अमनोज्ञ के प्रति घृणा होगी तो साधु अपने चारित्र को दूषित कर लेगा। (२) मनोज्ञ सरस आहार में मूच्छित न हो, और न ही बार-बार वैसे आहार की अभिलाषा करे । (३) अपनी पूजा-प्रतिष्ठा और कीर्ति की कामना न करे । (४) धृतिमान हो और (५) बाह्य-आभ्यन्तर परिग्रह से विमुक्त हो । इस दृष्टि से आचारसमाधि के लिए तीन बातें त्याज्य हैं, और दो बातें उपादेय हैं। निर्दोष आहार का सेवन भी निर्दोष ढंग से करे तो उसका निर्दोष आहार लाना सफल है । कहा भी है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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