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वीर्य : अष्टम अध्ययन
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अन्वयार्थ (माइणो माया कट्ट) माया करने वाले व्यक्ति माया यानी छलकपट करके (कामभोगे समारभे) कामभोगों का सेवन करते हैं। (आयसायाणुगामिणो) अपने सुख के पीछे दौड़ने वाले वे (हंता छेत्ता पगभित्ता) प्राणियों को मारते, काटते और चीरते हैं।
भावार्थ धोखेबाज लोग कपट एवं ठगी से दूसरे का धन आदि हरण करके या गुप्त रूप से कामभोगों का सेवन करते हैं। वे अपने सुख के पीछे अंधी दौड़ लगाने वाले बालवीर्यवान् पुरुष प्राणियों का हनन, छेदन और विदारण (चीरना) करते हैं।
व्याख्या
सुखेच्छाओं के पीछे दौड़ने वाले कपटी लोगों के कारनामे जो लोग केवल अपने सुख और प्रसिद्धि के पीछे अन्धे होकर दौड़ते हैं, वे दूसरों को ठगने में, परवंचना करने में और सब्जबाग दिखाने में बड़े चतुर होते हैं। वे हाथ की सफाई से, मुंह की सफाई से और अपने मधुर व्यवहार से भोले-भाले लोगों की आँखों में इस प्रकार धूल झोंकते रहते हैं कि वे सहसा उसकी माया को पकड़ नहीं सकते । इस प्रकार वे बड़ी सफाई से धनिकों और युवतियों को अपने मायाजाल में फंसाकर पाँचों इन्द्रियों के शब्दादि विषयों का मनमाना उपभोग करते हैं । यहाँ 'कामभोगे समारभे' के बदले 'आरम्भाय तिवट्टइ भी पाठान्तर मिलता है, जिसका अर्थ होता है-- वे भोगार्थी व्यक्ति मन वचन-काय तीनों से आरम्भ में प्रवृत्त रहते हैं।
इस प्रकार परवंचना से कामभोगों का सेवन करते हुए वे क्या-क्या करते हैं ? इसके लिए शास्त्रकार कहते हैं—'हन्ता छेत्ता पगभित्ता आयसायाणुगामिणो।' आशय यह है कि वे सुख की लालसा में तत्पर, विषयभोगासक्त एवं क्रोध-मान-माया-लोभ चारों कषायों से मलिन हृदय वाले पुरुष प्राणियों का घात करते हैं, उनके नाक, कान, पेट, पीठ आदि अंग-उपांग काट लेते हैं, उनका पेट फाड़ देते हैं, आँतें चीर देते हैं । इस प्रकार के अशुभ पुरुषार्थ को शास्त्रकार बालवीर्य कहते हैं।
मूल पाठ मणसा वयसा चेव, कायसा चेव अंतसो । आरओ परओ वावि, दुहावि य असंजया ॥६।।
संस्कृत छाया मनसा वचसा चैव, कायेन चैवान्तशः । आरतः परतो वाऽपि द्विधोऽपि चासंयताः ।।६।।
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