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वीर्य : अष्टम अध्ययन
चाहिए । अपदों में गोशीर्ष चन्दन आदि के वीर्य (शक्ति) को समझना चाहिए । इस चन्दन में यह शक्ति है कि इसका लेप लगाने से शीतकाल में शीत और ग्रीष्मकाल में गर्मी दूर हो जाती है । अतः इसका वीर्य अपदद्रव्यवीर्य है।
अचित्त द्रव्यवीर्य तीन प्रकार का है - आहार, आवरण (शरीररक्षक कवच आदि) और प्रहरण (शस्त्र)। आहार का वीर्य यह है कि दूध आदि पदार्थों के सेवन से शरीर और इन्द्रियों में ताकत एवं स्फति आती है । जैसे दूध आदि । वातपित्त कफादि नाशक, बुद्धिवर्द्धक, शक्तिवर्द्धक औषधियों को भी आहार-रस-वीर्य कहते हैं । शरीर रक्षण में कवच, ढाल आदि की शक्ति आवरण-वीर्य हैं और शस्त्र, अस्त्र आदि की शक्ति प्रहरणवीर्य है ।
क्षेत्रवीर्य --जिस क्षेत्र का जो वीर्य (सामर्थ्य) है वह क्षेत्र द्रव्यवीर्य है । अथवा दुर्ग आदि स्थान के आश्रय से किसी पुरुष का उत्साह बढ़ता है, इसलिए भी वह क्षेत्रवीर्य है, अथवा देवकुरु आदि क्षेत्र में सभी पदार्थ उस क्षेत्र के प्रभाव से उत्तमवीर्यवान होते हैं, इसलिए वह क्षेत्रवीर्य है। अथवा जिस क्षेत्र में वीर्य की व्याख्या की जाय वह भी क्षेत्रवीर्य है ।
कालवीर्य ---एकान्त सुखयुक्त सुषम नामक प्रथम आरादि कालवीर्य है। अथवा अमुक-अमुक ऋतु में अमुक-अमुक वस्तु शक्ति बढ़ाती है, सामर्थ्य एवं स्वास्थ्य बढ़ती है, वह भी कालवीर्य है ।
भाववीर्य-वीर्य-शक्तियुक्त जीव की वीर्यसम्बग्धी अनेक तब्धियाँ हैं । यह छाती का वीर्य, शरीरवीर्य (बल), इन्द्रियबल, आध्यात्मिक बल आदि अनेक प्रकार का होता है । मनोबल---मन आन्तरिक व्यापार से मनोयोग्य पुद्गलों को मन के रूप में, भाषा के योग्य पुद्गलों को भाषा के रूप में तथा काय के योग्य पुद्गलों को काय के रूप में एवं श्वास-उच्छ्वास के योग्य पुद्गलों को श्वासोच्छ्वास के रूप में परिणत करता है, वह मनोवीर्य है । इसके दो भेद हैं-सम्भाव्य और संभव । जो जीव बुद्धिमान के द्वारा कही गई बात को इस समय नहीं समझ सका, परन्तु भविष्य में अभ्यास के द्वारा समझ लेगा, उसका वह मनोबल सम्भाव्यमनोवीर्य है। तीर्थंकरों तथा अनुत्तरविमान के देवों का मन बहुत निर्मल होता है। वे मन द्वारा जो प्रश्न करते हैं, उसका समाधान तीर्थंकरदेव द्रव्यमन से ही दे देते हैं । उनका यह मनोबल संभवमनोवार्य है।
वचनबल-वाग्वीर्य के भी दो भेद हैं संभव और सम्भाव्य । तीर्थंकरों की वाणी में एक योजन दूर तक फैलने का सामर्थ्य है, सबको अपनी-अपनी भाषा में समझाने की उसमें शक्ति है, इसलिए वह संभववाग्वीर्य है । किसी-किसी व्यक्ति की वाणी दूध एवं मधु के समान माधुर्यबल से युक्त होने से सबको प्रभावित कर सकती
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