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व्याख्या
सुशील साधु चार बातों से सावधान रहे
इस गाथा में सुशील साधु को संयम रक्षा के लिए किन-किन बातों से सावधान रहना चाहिए ? यह बताया गया है । साधु को निम्नलिखित बातों से सावधान रहना चाहिए
( १ ) वह ध्यान रखे कि संयम यात्रा के निर्वाह के लिए मुझे आहार करना है, (२) पूर्वकृत पापों का त्याग करने का प्रतिदिन संकल्प करे, अन्यथा पूर्व संस्कार उसके मार्ग में विघ्न डालेंगे, (३) जब कभी दुःखों से घिर जाय, तब मोक्ष या संयम में अपना ध्यान ओतप्रोत कर दे, (४) कर्मशत्रु का दमन करता रहे, अगर कर्मशत्रु को आगे बढ़ने या मनमाना करने दिया जाएगा तो वह आत्मा पर हावी हो जाएगा, फिर आत्मा अपनी साधना को निर्विघ्नतापूर्वक नहीं कर सकेगा । अतः सुशील साधक को अपनी संयम साधना शुद्ध एवं तेजस्वी रखने के लिए इन बातों से सावधान रहना चाहिए ।
मूल पाठ
अवि हम्ममाणे फलगावतट्ठी समागमं कंखति अंतकस्स । णिधूय कम्मं ण पवंचुवेइ, अक्खक्खए वा सगडं
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सूत्रकृतांग सूत्र
संस्कृत छाया
अपि हन्यमानः फलकावतष्टी, समागमं कांक्षत्यन्तकस्य निर्धूय कर्म न प्रपञ्चमुपैति, अक्षक्षय इव शकटम्
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113011 ॥त्ति बेमि ॥
अन्वयार्थ
( अवि हम्ममाणे ) परीषहों और उपसर्गों के द्वारा पीड़ा पाता हुआ भी उसे सहन करे ( फलगावतट्ठी) जैसे लकड़ी के तख्ते को दोनों ओर से छोले जाने पर वह रागद्वेष नहीं करता, वैसे ही बाह्य और आभ्यन्तर तप से कष्ट पाता हुआ भी साधक द्वेष न करे, (अंकस्स समागमं कखति ) किन्तु मृत्यु के आने की प्रतीक्षा करे । ( णिधूयकम्मं ण पवंचुवेद ) इस प्रकार कर्म को दूर करके शोक आदि को प्राप्त नहीं करता । ( अक्खक्खए वा
टूट जाने से गाड़ी आगे नहीं चलती है । (त्ति बेमि ) ऐसा मैं कहता हूँ ।
भावार्थ
I
॥३०॥
॥ इति ब्रवीमि ॥
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साधु जन्म, मरण, रोग,
सगड) जैसे अक्ष ( धुरी ) के
परीषहों और उपसर्गों से पीड़ित होता हुआ भी साधु उसे सहन करे, जैसे दोनों तरफ से छोला जाता हुआ काष्ठ का तख्ता रागद्वेष नहीं करता,
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