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सूत्रकृतांग सूत्र
अन्वयार्थ (णिक्खम्म) जो पुरुष साधु-दीक्षा के लिए घर से निकल कर (परभोयणमि) दूसरे के भोजन के लिए (क्षीणे) दीन बनकर (मुहमंगलोए) भाट की तरह मुख मांगलिक बनता है, जी-हजरी करते हुए मुह पर दूसरे की प्रशंसा करता है, (नीवारगिद्ध व महा बराहे) वह चावल के दानों में आसक्त मोटे ताजे सूअर की तरह (उदराणुगिद्ध) पेट भरने में ही आसक्त है, (अदूरए) वह निकट भविष्य में ही (घात मेव) नाश को ही (एहिइ) प्राप्त होगा।
भावार्थ जो पुरुष मुनि दीक्षा के लिए घरबार छोड़कर निकला है, किन्तु दूसरे के भोजन के लिए दीन बनकर भाट की तरह चापलूसी करता है वह चावल के दानों में आसक्त मोटे ताजे सूअर की भाँति अपना पेट पालने में ही आसक्त है। ऐसा व्यक्ति शीघ्र ही विनाश को प्राप्त होगा।
व्याख्या पेट के लिए कितनी दीनता ? कितनी चापलूसी ?
___ इस गाथा में बताया गया है कि साधु बन जाने के बाद स्वादलोलुपतावश दीनता, चापलूसी और जी-हजूरी करके साधक अपना कितना पतन कर लेता है ? अपनी आत्मा का किस प्रकार विनाश कर लेता है ? वास्तव में घरबार, कुटुम्बकवीला और धन-धान्य आदि छोड़कर साधु बन जाने के बाद वह गृहस्थ के यहाँ बने हए भोजन में से मधुकरी वृत्ति से अनेक घरों में से थोड़ा-थोड़ा आहार लेकर अपना निर्वाह करता है, किन्तु जब वह साधु अपनी उच्चवृत्ति, साधुता, त्यागतपस्या का विचार नहीं करता, सिर्फ जिह्वालोलुप बन जाता है, तब वह यथालाभ संतुष्ट न होकर सरस स्वादिष्ट भोजन के लिए भिखारी की तरह दीन बनकर अनेक धनिकों या सत्ताधीशों को चाटुकारी, खुशामद, जीहजूरी करने लगता है, वह उन्हें प्रसन्न करने के लिए ठकुरसुहाती बात कहता है। कई बार उनकी प्रशंसा में अतिशयोक्ति भरे वचन कहकर वह उन लोगों को प्रसन्न करता है-आप तो महान् पुण्यवान हैं, भाग्यशाली हैं, आपको कौन नहीं जानता ? आप तो कर्ण की तरह महादानेश्वरी हैं, आप धर्मात्मा हैं, आपके गुणों की सर्वत्र प्रशंसा हो रही है, धर्मकार्यों में और साधुसन्तों की सेवा में आप कभी पीछे नहीं रहते, इत्यादि । भाटों की तरह इस प्रकार की चाटुकारिता वह सर्वस्वत्यागी साधु क्यों करता है ? इसका कारण शास्त्रकार बताते हैं- 'उदराणुगिद्ध' वह साधु पेटू है, उदरम्भरी है, स्वादलोलुप है। अपनी जिह्वालोलुपता के कारण वह पेट भरने में उसी तरह टूट पड़ता है, जैसे विशालकाय सूअर चावल के दानों पर एकदम टूट पड़ता है। परन्तु जिस प्रकार विशालकाय सूअर चावल के दानों में लुब्ध होकर भारी संकट में फँस जाता है,
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