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कुशील - परिभाषा : सप्तम अध्ययन
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देता है, यह कथन कोरी कल्पना है। वस्तुतः मूढ़ लोग ऐसे ही अज्ञानान्ध नेता के छलग्गू बनकर जलस्नान आदि क्रियाओं द्वारा प्राणियों की हिंसा करते हैं ।। १६ ।।
पापकर्म करने वाले पुरुष के पाप को यदि सचित्त जल दूर कर देता है तो जलजन्तुओं का घात करने वाले मछुए आदि के पापकर्म को जल मिटा देगा और उन्हें भी मुक्ति प्राप्त हो जाएगी; परन्तु ऐसा होता नहीं है । इसलिए जो ऐसा कहते हैं कि जलस्पर्श से मुक्ति होती है, वे मिथ्या कहते हैं ।। १७ ।
सन्ध्याकाल और प्रातः काल अग्नि का स्पर्श करते हुए जो लोग अन में होम करने से मोक्ष प्राप्ति होना बताते हैं, वे भी मिथ्यावादी हैं, क्योंकि यदि इस प्रकार से मोक्ष मिलती हो तो फिर रात-दिन अग्नि-स्पर्श कुकर्मियों को भी मोक्ष मिल जाना चाहिए || १८।।
जलावगाहन से या अग्नि में होम करने से जो लोग सिद्धिलाभ बताते हैं, उन्होंने इस प्रकार की प्ररूपणा करने वाले शास्त्रों की परीक्षा किये बिना ही ऐसे खोटे सिद्धान्त को मान लिया है । वस्तुतः इन ऊटपटाँग क्रियाओं से मुक्ति नहीं मिलती है । वस्तुतत्त्व को बिना समझे ही आँख मूँद कर चलने वाले वे लोग इन अन्धक्रियाओं द्वारा प्राणिघात करके मोक्षप्राप्ति के बदले संसार प्राप्ति ही करते हैं । अतः सम्यक्ज्ञान प्राप्त करके तथा सभी पहलुओं से विचार करके त्रस और स्थावर प्राणियों में भी सुख की संज्ञा ( इच्छा) जानो और उनकी किसी भी प्रकार से हिंसा मत करो ।।१६।।
व्याख्या
जलस्पर्श एवं अग्निहोत्रादि क्रियाओं से मोक्ष कैसे ?
तेरहवीं गाथा से लेकर उन्नीसवीं गाथा तक शास्त्रकार ने जलस्पर्श से, लवणसेवन त्याग से या अग्निहोत्र से मोक्ष मामने वाले मतवादियों की मान्यता को मिथ्या सिद्ध करके उनका निराकरण किया है।
बात यह है कि प्रातःकाल जलस्नान करने से समस्त कर्मक्षयरूप मोक्ष प्राप्त होने का कोई तुक नहीं है। बल्कि सचित्त जल के सेवन से जलकायिक जीवों का तथा उनके आश्रित रहे हुए अनेक त्रसजीवों का उपमर्दन होता है । जीवों की हिंसा से मोक्षप्राप्ति कदापि सम्भव नहीं है । दूसरी बात यह है कि जल में आत्मा पर लगे हुए आन्तरिक पापकर्म - मल को दूर करने की शक्ति नहीं है, बल्कि वह बाह्यमल को भी पूरी तरह से साफ नहीं कर सकता, फिर आन्तरिक मल को धो डालने की शक्ति उसमें हो ही कैसे सकती है ? वस्तुतः आन्तरिक मल का नाश तो भावों की
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