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________________ सूत्रकृतांग सूत्र शुद्धि से ही हो सकता है। जो भावों की शुद्धि से रहित है, वह व्यक्ति चाहे जितना पानी में डुबकी लगा ले, उससे उसके आन्तरिक पापमल की शुद्धि नहीं हो सकती । मोक्ष तो आन्तरिक मल का नाश होने से ही हो सकता है, फिर वह सचित्त जलस्नान से कैसे हो जायेगा? खारे नमक को खाने का त्याग कर देने से भी मोक्षप्राप्ति की आशा नहीं की जा सकती, क्योंकि खारा नमक ही एकमात्र रसजनक नहीं है, मिश्री, शर्करा, घृत, दूध, दधि आदि भी रसोत्पादक पदार्थ हैं। फिर हम यह पूछते हैं कि मोक्ष द्रव्य से नमक का त्याग कर देने से मिलता है या भाव से ? यदि द्रव्य से लवणत्याग से मोक्ष मिलता हो, तब तो जिस देश में लवण होता ही नहीं, वहाँ के सभी निवासियों को मोक्ष मिल जाना चाहिए, क्योंकि वे द्रव्यत: लवणत्यागी हैं। परन्तु ऐसा होता देखा नहीं जाता, और न ही यह अभीष्ट है। यदि भाव से लवणत्यागी को मोक्ष प्राप्त होना मानें तो भाव ही मोक्षप्राप्ति का कारण ठहरा, ऐसी स्थिति में लवणत्याग का क्या महत्व रहा ? कई मूढ़ एक ओर तो नमक छोड़ देते हैं, लेकिन दूसरी ओर वे मद्य, मांस एवं लहसुन आदि तामसिक पदार्थों का सेवन करके जन्ममरण रूप संसार में असंख्यकाल तक डटे रहते हैं, क्योंकि उनका अनुष्ठान संसारनिवास के योग्य ही होता है । वे मोक्ष के कारणभूत सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की भावों से आराधना-साधना करते नहीं, केवल ऊपर-ऊपर की बातों पर तैरते रहते हैं, इसलिए उनका मोक्ष पाना तो बहुत दूर है, संसार में ही वे अपना डरा जमा लेते हैं । १४-१५वीं गाथा में शास्त्रकार जलस्पर्श से मुक्तिवाद का खण्डन करते हुए कहते हैं कि जो मन्दमति शीतल (मचित्त) जल से स्नान आदि से मुक्ति बताते हैं और यह कहते हैं कि प्रात काल में अपराह्न में एवं सायंकाल में यानी तीनों सन्ध्याओं के समय शीतल (कच्चे) जल से स्नान आदि क्रियाएँ करने से मोक्ष प्राप्ति होती है; यह कथन भी मिथ्या है। इस प्रकार यदि जलस्पर्श से ही मुक्ति मिलने लगेगी, तब तो यह बहुत सस्ता सौदा है । हर एक व्यक्ति, चाहे वह कितना ही पाप करके आया हो, पानी में डुबकी लगाते ही उसका सब पाप धुल जाएगा और वह मोक्ष पा लेगा। मनुष्य की बात तो जाने दें, मछली आदि जो जलचर प्राणी हैं, वे तो चौबीसों घण्टे जल में ही रहते हैं, जलस्पर्श से ओतप्रोत रहते हैं, बेचारे उन प्राणियों को सतत जलस्पर्श के कारण शीघ्र ही मुक्ति मिल जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त अगर जलस्पर्श से मुक्ति प्राप्त होती हो तो सतत जल में अवगाहन करके रहने वाले मछली, कछुए, साँप, जलमुर्गा, दरियाई घोड़ा, ऊँट नामक जलचर, मनुष्याकार जलराक्षस नामक जलचर जन्तुओं को तो सर्वप्रथम मोक्ष मिल जाना चाहिए। परन्तु ऐसा देखा नहीं जाता और यह अभीष्ट भी नहीं है । इसलिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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