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________________ सूत्रकृतांग सूत्र मिटा दे तो (एगे दगसत्तघाती सिज्झिस) ये जो जलजीवों का घात करने वाले मछए आदि हैं, वे भी मुक्ति प्राप्त कर लेंगे। (मुसं वयंते जलसिद्धिमाहु) इसलिए जल में अवगाहन करने से मुक्ति प्राप्त होती है, ऐसा जो कहते हैं, वे मिथ्यावादी हैं ।।१७।। (सायं च पायं अगणि फुसंता) सायंकाल और प्रातःकाल अग्नि का स्पर्श करते हुए (जे) जो वादी (हुतेण सिद्धिमुदाहरंति) आग में होम करने से मोक्ष-प्राप्ति बतलाते हैं, (वे भी मिथ्यावादी हैं) (एवं सिद्धि सिया) यदि इस प्रकार--अग्नि के स्पर्श-से मुक्ति मिल जाए, (तम्हा अणि फुसंताण कुकम्मिणं पि हवेज्ज) तब तो अग्नि का रात-दिन स्पर्श करने वाले कुकमियों-दुष्टाचारियों को भी झटपट मुक्ति मिल जानी चाहिए ॥१८॥ (अपरिक्ख दिह्र) जल में अवगाहन तथा अग्निहोम आदि से सिद्धि (मुक्ति) मानने वाले वादियों ने परीक्षा किये बिना ही इस सिद्धान्त को मान लिया है, (ण हु एव सिद्धि) वस्तुतः इस प्रकार सिद्धि (मुक्ति) नहीं मिला करती । (अबुज्झमाणा ते) वस्तुतत्त्व को न समझने वाले ये लोग (घायं एहिति) घात-संसार को ही प्राप्त करेंगे । (विज्जं गहाय) अतः ज्ञान को ग्रहण करके (पडिलेह) और चारों ओर से विचार करके (तस थावरेहि भूएहि सातं जाणं) त्रस और स्थावर प्राणियों में सुख की इच्छा को समझो ॥१६॥ भावार्थ प्रातःकालिक स्नान आदि से मोक्ष नहीं मिलता, क्षार व नमक के न खाने से भी मोक्ष प्राप्त नहीं होता । वे अन्यतीर्थी लोग तो मद्य, मांस और लहसुन का सेवन करके मोक्ष से अन्य-संसार में निवास करते हैं-भ्रमण करते रहते हैं ॥१३॥ . सायंकाल और प्रभातकाल में सचित्त जल का स्पर्श करते हए जो लोग जलस्पर्श से मोक्ष की प्राप्ति बतलाते हैं, वे मिथ्यावादी हैं । यदि जल के स्पर्श से मोक्ष की प्राप्ति होती हो तो जल में निवास करने वाले जलचर जन्तुओं को कभी का मोक्ष मिल जाता; किन्तु ऐसा होना सम्भव नहीं है ॥१४॥ - यदि जलस्पर्श से मुक्ति मिलती हो तो मछलियाँ, कछुए, साँप, मद्गु नामक जलजन्तु, ऊँट नामक जलचर एव जलराक्षस (दरियाई घोड़ा) आदि सबसे पहले मुक्ति प्राप्त कर लेते; मगर ऐसा होता नहीं है । अतः जो जलस्पर्श से मोक्ष बताते हैं, उनका कथन अयुक्त है, ऐसा मोक्षतत्त्वज्ञ कहते हैं ॥१५॥ __ अगर पानी कर्ममल-पाप को धो डालता है तो वह उसी प्रकार से पुण्य (शुभकर्म) को भी धो डालेगा। इसीलिए पानी कर्ममल को साफ कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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