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कुशील-परिभाषा : सप्तम अध्ययन
उदकं यदि कर्ममलं हरेदेवं शुभमिच्छामात्रमेव अन्धं च नेतारमनुसृत्यः प्राणिनश्चैवं विनिघ्नन्ति मन्दाः ॥१६॥ पापानि कर्माणि प्रकुर्वतो हि, शीतोदकं तु यदि तद्धरेत सिद्ध येयुरेके दकसत्त्वघातिनो मृषा वदन्तो जलसिद्धिमाहुः ॥१७॥ हुतेन ये सिद्धिमुदाहरन्ति, सायं च प्रातरग्नि स्पृशन्तः एवं स्यात् सिद्धिर्भवेत्तस्मादग्नि स्पृशतां कुकमिणामपि ॥१८॥ अपरीक्ष्य दृष्टं नैवेवं सिद्धिरेष्यन्ति ते घातमबुध्यमानाः । भूतैर्जानीहि प्रत्युपेक्ष्य सातं, विद्यां गृहीत्वा त्रसस्थावरैः ।।१६।।
अन्वयार्थ (पाओसिणाणादिशु) प्रातःकाल के स्नान आदि से (मोक्खो नत्यि) मोक्ष नहीं होता है। (खारस्स लोणस्स अणासणेणं) खारे (या क्षार तथा) नमक के न खाने से भी मोक्ष नहीं होता । (ते) अन्यतीर्थी मोक्षवादी (मज्जमंसं लसुणं च भोच्चा) मद्य, मांस और लहसुन खाकर (अनस्थवासं) मोक्ष से अन्य स्थान संसार में निवास (परिकप्पयंति) करते हैं ॥१३॥
(सायं च पायं उदा फुसंता) सायंकाल और प्रातःकाल पानी का स्पर्श करते हुए (जे उदगेण सिद्धिमुदाहरंति) जो लोग जलस्नान से मोक्ष की प्राप्ति बतलाते हैं, (वे मिथ्यावादी हैं)। (उदगस्स फासेण सिद्धीसिया) जल के बार-बार स्पर्श से यदि मुक्ति मिले तो (दगंसि वहवे पाणा सिन्झिसु) जल में रहने वाले बहुत से जलचारी प्राणी मोक्ष प्राप्त कर लेते ॥१४॥
__(मच्छा य कुम्मा य सरीसिवा य) मछलियाँ, कछुए और साँप, (मगू य उट्ठा दगरक्खसा य) कौए के आकार का मद्गू नामक जल चर, ऊँट नामक जलचर और जलराक्षस (दरियाई घोड़ा) नामक जलचर (जला स्पर्श से मुक्ति होती तो, सबसे पहले मुक्ति प्राप्त कर लेते) (उदगेण जे सिद्धिमुवाहरंति) अतः जलस्पर्श से मुक्ति की प्राप्ति बताते हैं, (अट्ठाणमेयं कुसला वयंति) मोक्षतत्त्व में पारंगत पुरुष इस कथन को अयुक्त कहते हैं ॥१५॥
(उदगं जइ कम्ममलं हरेज्जा) जल यदि कर्म-मल का हरण-~-नाश करता है तो (एवं सुहं) इस प्रकार वह शुभ -पुण्य का भी हरण-नाश कर देगा ! (इच्छामित्तमेव) इसलिए जल कर्ममल को हर लेता है, यह कहना इच्छामात्र-कल्पनामात्र है। (मंदा) मूढ़ लोग ही (अंध णेयारमणस्सरिता) अंधे नेता के पीछे-पीछे चलकर (एवं च पाणाणि विणिहंति) इस प्रकार - जल स्नान आदि ऊटपटाँग क्रियाएँ करके प्राणियों की हिंसा करते हैं ।।१६।।
__ (पावाई कम्माई पकुव्वतो हि) यदि पापकर्म करने वाले उस पुरुष के (तं) उस पाप को (सीओदगं तु हरिज्जा) यदि शीतल सचित्त पानी (या जल स्नान)
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