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समय : प्रथम अध्ययन - प्रथम उद्देशक
जैन शास्त्रों में जहाँ भी किसी वस्तु के त्याग ( प्रत्याख्यान) करने का प्रश्न आता है, वहाँ कहा गया है पहले 'ज्ञ-परिज्ञा' से उसे भली-भाँति जान लो फिर प्रत्याख्यान- परिज्ञा से उसका त्याग करो । यहाँ बन्धन को तोड़ने से पहले उक्त बन्धन को ज्ञ परिज्ञा से भली-भाँति जान लेने का उपदेश दिया है । तभी आत्मा अपनी पूर्व तैयारी भली-भाँति करके, अहिंसा-सत्यादि या सम्यग्दर्शन- ज्ञान चारित्रादि शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित होकर क्षमा दया सेवा विनय आदि गुण - सहायकों से परिवृत होकर तथा दृढ़ साहस, श्रद्धा, उत्साह और बलवीर्य के साथ बन्धन को तोड़ सकेगा । इसीलिये यहाँ पहले बन्धन को जान कर उसे तोड़ने यानी जड़ से उखाड़ने की बात कही गई है । अन्यथा बिना ही तैयारी के आत्मा बन्धन के साथ भिड़ेगा तो उसे उन्मूलन करने की अपेक्षा ऊपर-ऊपर से उसे तोड़ देगा । आशय यह है कि यदि आत्मा पूर्ण तत्परता के साथ समझ-बूझ कर बन्धन को तोड़ने के लिये उपक्रम नहीं करेगा तो वह किसी एक बन्धन को तोड़ देगा, किन्तु दूमरा बन्धन शनैः शनैः उसके साथ लगता जायेगा, उसे पता ही नहीं चलेगा कि वह बन्धन चुपके से कहाँ से घुस आया ? उदाहरणार्थ --- एक साधक ने घरवार, कुटुम्ब परिवार के मोहबन्धनको तो तोड़ दिया, लेकिन धीरे-धीरे जिस संघ में उसने दीक्षा ली, वहाँ भक्त भक्ताओं, शिष्य - शिष्याओं, क्षेत्रों, उपाश्रयों, शास्त्रों, उपकरणों आदि का मोहबन्धन लग गया । वह ममत्व का बन्धन इतना सूक्ष्म रूप से लग गया कि उसे स्वयं को भान ही नहीं रहा, वह तो यही समझता रहा कि यह तो धर्म प्रभावना हो रही है, धर्मश्रद्धालुओं का परिवार बढ़ रहा है । वही मोहबन्धन के कारण बन गए । इसीलिये भगवान को संदेश दिया कि पहले उन बन्धनों को, जिन्हें तुम्हें लो, समझ लो, जाँच-परख लो ; फिर उन्हें तोड़ने का उपक्रम करो ।
किन्तु
सावधान न रहने से महावीर ने जिज्ञासु भव्यों तोड़ना है, भलीभाँति जान
बन्धन को तोड़ने का रहस्यार्थ यह है कि बन्धन के कारणों को तोड़ो | जिन कारणों से बन्धन आत्मा के चारों ओर लगे हैं, उनसे विपरीत कारणों से ही उन्हें तोड़ा जा सकता है । वहाँ कार्य में कारण का उपचार किया गया है । बन्धन तोड़ना कार्य है, किन्तु बन्धन के मूल स्रोतों को बन्द करना या मूल कारणों को तोड़ना कारण है । प्रकारान्तर से भगवान महावीर के इस उपदेश को इन शब्दों में कह सकते हैं- " बन्धन से मुक्त बनो, आत्मा को स्वतंत्रता को जिन बन्धनों ने दवा दिया है, उनसे छुटकारा पा लो, जिन बन्धनों ने आत्मा को कैद में डाल कर परवश बना दिया है, उन बन्धनों को काटकर फेंक दो । बन्धनों की जड़ें उखाड़ दो । अन्यथा वे बन्धन तुम्हें बारम्बार हैरान करेंगे, नाना योनियों और गतियों में परिभ्रमण करायेंगे, अनेक यातनाएँ दिलायेंगे ।"
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