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________________ सूत्रकृतांग सूत्र वह अपने आपको (अपनी आत्मा को) बन्धन में जकड़ी हुई, परतंत्र देखता है। इसलिये भगवान महावीर ने उस भव्य मुमुक्षु मानव को दूसरा उपदेश दिया कि आत्मा पर जो बन्धन हैं, वे वास्तविक नहीं हैं । तुम चाहो तो उन्हें तोड़ सकते हो । क्योंकि इन बन्धनों में अपने आपको जकड़ने वाली तुम्हारी ही आत्मा है । दूसरे किसी ने तुम्हें बन्धनों में नहीं टाला और तुम चाहो तो इन बाधनों से मुक्त हो सकते हो। यह मत समझो कि ये बन्धन तुम्हारी आत्मा से अधिक शक्तिशाली हैं, इन्हें तुम तोड़ नहीं सकते; इनकी प्रबल शक्ति के आगे तुम्हारी आत्मा निर्बल है। तुम अगर इन बन्धनों को तोड़ने में अपनी पूरी शक्ति लगा दोगे तो फिर इन बन्धनों को तुमसे विलग होना ही पड़ेगा। यही भगवान महावीर के उपदेश का आशय प्रतीत होता है। किन्तु साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जिस बन्धन को तुम तोड़ना चाहते हो, उसे पहले भलीभाँति जान लो, समझ लो उस बन्धन को पहचान लो, उसकी शक्ति को भी अच्छी तरह जाँच परख लो, अन्यथा यदि उस बन्धन से भिड़ने की तुम्हारी पूर्ण तैयारी नहीं हुई तो तुम उससे हार खा जाओगे, उसके प्रबलतम सुदृढ़ चक्रव्यूह को देखकर तुम निराश, हताश और पस्त हिम्मत होकर भाग छूटोंगे, उसका सामना नहीं कर सकोगे। किसी भी शत्रु को पराजित करना होता है तो पहले उसके बलाबल का पता लगाया जाता है। वह शत्रु जिससे उसे भिड़ना है, उसके पास कौन-कौन से शस्त्र हैं ? कौन-कौन उस के सहायक हैं ? उसकी कितनी तैयारी है ? उसका साहस एवं उत्साह कितना है ? वह शत्रु किस-किस प्रकार से कैसे-कैसे आक्रमण करता है ? बन्धन भी आत्मा का शत्रु है । आत्मा को इसे परास्त करने के लिये पहले इसके बलाबल, दमखम एवं साहस का पता लगा लेना चाहिए । यह भी जान लेना चाहिए कि बन्धनरूप शत्र किस-किस रूप में, किस किस प्रकार से आत्मा पर आक्रमण करता है ? उक्त बन्धनरिपु के कौन-कौन से सहायक हैं ? उस बन्धनरिपु के पास कौन-कौन से शस्त्र हैं ? बन्धन की अपने आप में कितनी प्रबल तैयारी है ? इन बातों को जाने बिना ही आत्मा बन्धन रूपी शत्रु के साथ जूझेगा तो सम्भव है, अपनी पूरी तैयारी के बिना परास्त हो जाय या बन्धन के प्रबल शस्त्रों के प्रहार से आहत होकर गिर जाय, या बन्धनरिपु के प्रलोभन में फँस कर आत्मा स्वयं पतित हो जाय, उसी का गुलाम बन जाय । आत्मा के साथ सहायक कम हुए तो सम्भव है, बन्धन के बहुसंख्यक सहायकों के आगे उसे घुटने टेकने पड़ें। इस लिये भगवान महावीर का सन्देश है.-बन्धन का पहले परिज्ञान कर लो । बन्धन को केवल जान लेना ही पर्याप्त नहीं है, उसको सब ओर से भली-भाँति जाँच-परख लेना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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