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सूत्रकृतांग सूत्र
संस्कृत छाया हस्तिष्वैरावणमाहुतिं, सिहो मृगाणां सलिलानां गंगा । पक्षिषु वा गरुडो वेणुदेवो, निर्वाणवादिनमिह ज्ञातपुत्रः ।।२१।।
___ अन्वयार्थ (हत्थीसु) हाथियों में (णाए) जगत्प्रसिद्ध (एरावणमाहु) ऐरावण हाथी को प्रधान कहते हैं, (मिगाणं सीहो) तथा मृगों में सिंह ---मृगेन्द्र प्रधान है, (सलिलाण गंगा) जलों-नदियों में गंगा प्रधान है, (पक्खीसु वा गरुलेवेणुदेवो) पक्षियों में वेणुदेव गरुड़ प्रधान हैं, इसी प्रकार (निव्वाणवादीणिह णायपुत्ने) निर्वाणवादियों में इस विश्व में ज्ञातपुत्र भगवान महावीर स्वामी श्रेष्ठ हैं ।
भावार्थ जिस प्रकार हाथियों में इन्द्र का प्रसिद्ध ऐरावत हाथी मुख्य है, पशुओं (मृगों) में सिंह मुख्य हैं, नदियों में गंगा नदी मुख्य है, पक्षियों में वेणुदेव गरुड़ पक्षी मुख्य हैं, उसी प्रकार निर्वाणवादियों-मोक्षमार्ग के उपदेशकों (नेताओं) में ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर मुख्य थे।
व्याख्या निर्वाणमार्ग के उपदेशकों में प्रधान ज्ञातपुत्र महावीर
इस गाथा में भगवान् महावीर को चार लोकप्रसिद्ध उपमाओं से उपमित करके निर्वाणवादियों में अग्रणी बताया गया है। प्रधान वस्तुओं के विशेषज्ञ बुद्धिमान बताते हैं कि हाथियों में इन्द्र का जगत्प्रसिद्ध ऐरावत हाथी प्रधान होता है । पशुओं में बल आदि की दृष्टि से सिंह को मुख्य बताया जाता है, भरतक्षेत्र की अपेक्षा से समस्त नदियों में पवित्रता, विशालता आदि की दृष्टि से गंगानदी मुख्य मानी जाती है। इसी प्रकार पक्षियों में आकाश में सुदीर्घ मुक्त विहार की दृष्टि से गरूड़पक्षी (वेणुदेव) मुख्य माना जाता है। इसी तरह निर्वाणवादियों में ज्ञातपुत्र भगवान महावीर प्रधान हैं । निर्वाण सिद्धि क्षेत्र को कहते हैं अथवा समस्त कर्मक्षय का नाम निर्वाण (मोक्ष) है। निर्वाण के स्वरूप, उपाय, प्राप्ति तथा साधक-बाधक कारणों को जो बताते हैं, उन्हें निर्वाणवादी कहते हैं । संसार के विभिन्न निर्वाणवादियों (मोक्ष के महोपदेशकों) में ज्ञातपुत्र वीर वर्धमान स्वामी अग्रणी थे क्योंकि उन्होंने निर्वाण का यथार्थ स्वरूप बताया था। पूर्वोक्त उपमाएँ भगवान के मंगलता, शुक्लता, पवित्रता और स्वतन्त्रता आदि सद्गुणों को अभिव्यक्त करती है।
मूल पाठ जोहेसु णाए जह वीससेणे, पुप्फेसु वा जह अरविंदमाहु । खत्तीण सेठे जह दंतवक्के, इसीण सेठे तह बद्धमाणे ॥२२॥
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