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वीरस्तुति : छठा अध्ययन
संस्कृत छाया
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योधेषु ज्ञातो यथा विश्वसेनः, पुष्पेषु वा यथाऽरविन्दमाहुः क्षत्रियाणां श्र ेष्ठो यथा दान्तवाक्यः, ऋषीणां श्र ेष्ठस्तथा वर्धमानः ||२२|| अन्वयार्थ
(जह ) जैसे ( जाए) विश्वविख्यात (वीस सेणे) विश्वसेन ( जोहेस सेट्ठे ) योद्धाओं श्रेष्ठ है, (जह ) जैसे ( पुष्केसु वा ) फूलों में ( अरविदमाहु) अरविन्द - कमल प्रधान है, (जह ) जैसे ( खत्तीण) क्षत्रियों में (दंतवक्के सेट्ठे ) दान्तवाक्य श्रेष्ठ है, ( तह) इसी प्रकार (इसीण) ऋषियों में ( वद्धमाणे सेट्ठे) वर्धमान स्वामी श्रेष्ठ हैं । भावार्थ
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जिस प्रकार वीर योद्धाओं में वासुदेव महान् हैं, फूलों में अरविन्द कमल महान् है, क्षत्रियों में दान्तवाक्य ( चक्रवर्ती) महान् है, उसी प्रकार ऋषियों में श्री वर्द्धमान महावीर सबसे महान् थे ।
व्याख्या
ऋषियों में सर्वतो महान् ऋषिवर व मानस्वामी इस गाथा में वीरप्रभु को तीन उपमाओं से उपमित करके ऋषियों में श्रं ष्ठ बताया है । पहली उपमा यह है - जैसे हाथी, घोड़े, रथ और पैदल इन चार अंगों वाले बल सहित चतुरंगिणी सेना से सम्पन्न योद्धाओं में विश्वसेन -- वासुदेव प्रधान है, तथा पुष्पों में अरविन्द कमल का पुष्प श्रेष्ठ कहलाता है । क्षत्रिय का अर्थ है - क्षत ( नाश) से जो प्राणियों का त्राण-रक्षण करता है । ऐसे क्षत्रियों में दान्तवाक्य प्रधान है । दान्तवाक्य चक्रवर्ती वह कहलाता है, जिसके एक वाक्य से ही शत्रु का दमन हो जाता है, इन सबकी तरह ऋषियों में श्री वीर वर्धमान स्वामी श्रेष्ठ हैं । ये उपमाएँ भगवान् की शुरता, वीरता, दृढ़ता, सर्वप्रियता, मनोहरता, इन्द्रियनिग्रहता और भवभय से रक्षकता आदि सद्गुणों की राशि को सूचित करती हैं ।
मूल पाठ
दाणाण सेट्टं अभयप्पयाणं, सच्चेसु वा अणवज्जं वयंति । तवेसु वा उत्तमं बंभचेरं, लोगुत्तमे समणे नायपुत्त
॥२३॥
संस्कृत छाया
दानानां श्रेष्ठमभयप्रदानं सत्येषु वाऽनवद्यं वदन्ति । तपस्सुवोत्तमं ब्रह्मचर्य, लोकोत्तमः श्रमणो ज्ञातपुत्रः ॥२३॥
अन्वयार्थ
(दाणाण) दानों में ( अभयप्पयाणं सेट्ठ) अभयदान श्रेष्ठ हैं, ( सच्चेसु वा ) अथवा सत्यों में (अणवज्जं वयंति) उस सत्य को श्रेष्ठ कहते हैं, जिससे किसी को
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