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________________ वीरस्तुति : छठा अध्ययन संस्कृत छाया 1 योधेषु ज्ञातो यथा विश्वसेनः, पुष्पेषु वा यथाऽरविन्दमाहुः क्षत्रियाणां श्र ेष्ठो यथा दान्तवाक्यः, ऋषीणां श्र ेष्ठस्तथा वर्धमानः ||२२|| अन्वयार्थ (जह ) जैसे ( जाए) विश्वविख्यात (वीस सेणे) विश्वसेन ( जोहेस सेट्ठे ) योद्धाओं श्रेष्ठ है, (जह ) जैसे ( पुष्केसु वा ) फूलों में ( अरविदमाहु) अरविन्द - कमल प्रधान है, (जह ) जैसे ( खत्तीण) क्षत्रियों में (दंतवक्के सेट्ठे ) दान्तवाक्य श्रेष्ठ है, ( तह) इसी प्रकार (इसीण) ऋषियों में ( वद्धमाणे सेट्ठे) वर्धमान स्वामी श्रेष्ठ हैं । भावार्थ ६६१ जिस प्रकार वीर योद्धाओं में वासुदेव महान् हैं, फूलों में अरविन्द कमल महान् है, क्षत्रियों में दान्तवाक्य ( चक्रवर्ती) महान् है, उसी प्रकार ऋषियों में श्री वर्द्धमान महावीर सबसे महान् थे । व्याख्या ऋषियों में सर्वतो महान् ऋषिवर व मानस्वामी इस गाथा में वीरप्रभु को तीन उपमाओं से उपमित करके ऋषियों में श्रं ष्ठ बताया है । पहली उपमा यह है - जैसे हाथी, घोड़े, रथ और पैदल इन चार अंगों वाले बल सहित चतुरंगिणी सेना से सम्पन्न योद्धाओं में विश्वसेन -- वासुदेव प्रधान है, तथा पुष्पों में अरविन्द कमल का पुष्प श्रेष्ठ कहलाता है । क्षत्रिय का अर्थ है - क्षत ( नाश) से जो प्राणियों का त्राण-रक्षण करता है । ऐसे क्षत्रियों में दान्तवाक्य प्रधान है । दान्तवाक्य चक्रवर्ती वह कहलाता है, जिसके एक वाक्य से ही शत्रु का दमन हो जाता है, इन सबकी तरह ऋषियों में श्री वीर वर्धमान स्वामी श्रेष्ठ हैं । ये उपमाएँ भगवान् की शुरता, वीरता, दृढ़ता, सर्वप्रियता, मनोहरता, इन्द्रियनिग्रहता और भवभय से रक्षकता आदि सद्गुणों की राशि को सूचित करती हैं । मूल पाठ दाणाण सेट्टं अभयप्पयाणं, सच्चेसु वा अणवज्जं वयंति । तवेसु वा उत्तमं बंभचेरं, लोगुत्तमे समणे नायपुत्त ॥२३॥ संस्कृत छाया दानानां श्रेष्ठमभयप्रदानं सत्येषु वाऽनवद्यं वदन्ति । तपस्सुवोत्तमं ब्रह्मचर्य, लोकोत्तमः श्रमणो ज्ञातपुत्रः ॥२३॥ अन्वयार्थ (दाणाण) दानों में ( अभयप्पयाणं सेट्ठ) अभयदान श्रेष्ठ हैं, ( सच्चेसु वा ) अथवा सत्यों में (अणवज्जं वयंति) उस सत्य को श्रेष्ठ कहते हैं, जिससे किसी को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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