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वीरस्तुति : छठा अध्ययन
६५७ अग्र्या, परमा, अशेषकर्म विशुद्धि, सादि-अनन्ता। सिद्धिगति सब गतियों में श्रेष्ठ है, लोक के अग्रभाग में स्थित होने के कारण वह अग्र्या है, वह परमधाम होने के कारण परमा है। वहाँ जाने के पश्चात आवागमन नहीं होता, इसलिए सादि-अनन्त है, समस्त कर्मों का क्षय होने से तथा आत्मा विशुद्ध होने से वह प्राप्त होती है, इसलिए इसे अशेषकर्म विशुद्धि भी कहा है।
मल पाठ रुक्खेसु णाए जह सामली वा, जस्सि रति वेययंतो सवन्ना । वणेसु वा गंदणमाहु सेठें, नाणेण सीलेण य भूतिपन्ने ॥१८॥
संस्कृत छाया वृक्षेषु ज्ञातो यथा शाल्मली वा, यस्मिन् रतिं वेदयन्ति सुपर्णाः । वनेषु वा नन्दनमाहुः श्रेष्ठं, ज्ञानेन शीलेन च भूतिप्रज्ञः ॥१८॥
अन्वयार्थ (जह) जैसे (रुक्खेसु) वृक्षों में (णाए सामली) प्रसिद्ध सेमर वृक्ष श्रेष्ठ है, (स्सि) जिस पर (सुवन्ना) सुपर्णकुमार नामक भवनपति जाति के देव (रति वेययंति) आनन्द का अनुभव करते हैं। (वणेसु वा गंदणमाहु सेट्ठ) जैसे वनों में नन्दनवन को श्रेष्ठ कहते हैं, इसी प्रकार (नाणेण सोलेण य भूतिपन्ने) ज्ञान और चारित्र के द्वारा उत्तम ज्ञानी भगवान् महावीर को श्रेष्ठ कहते हैं ।
भावार्थ
__ जैसे वृक्षों में शाल्मली (सेमर) वृक्ष श्रेष्ठ है, जिस पर सुपर्णकुमार जाति के भवनपति देव क्रीड़ा करके आनन्द का अनुभव करते हैं, तथा जैसे संसार के समस्त सुन्दर वनों में नन्दनवन श्रेष्ठ है, जो सुमेरुगिरि पर अवस्थित है, इसी प्रकार अनन्तज्ञानी भगवान महावीर भी ज्ञान और शील में सर्वश्रेष्ठ महापुरुष थे।
व्याख्या
ज्ञान और शील में सर्वश्रेष्ठ महापुरुष : महावीर इस गाथा में शाल्मलीवृक्ष एवं नन्दनवन की उपमा देकर भगवान् महावीर को ज्ञान और शील में सर्वश्रेष्ठ पुरुष बताया गया है। जैसे देवकुरुक्षेत्र में वृक्षों में प्रसिद्ध शाल्मली (सेमर) वृक्ष श्रेष्ठ है, जो सुपर्णजाति के भवनपति देवों का आनन्ददायक क्रीड़ास्थल है, जिस पर दूसरे स्थानों से आकर सुपर्णकुमार देव विशिष्ट आनन्द का अनुभव करते हैं। तथैव वनों में देवों की क्रीड़ाभूमि नन्दनवन प्रधान है, इसी प्रकार भगवान् भी समस्त पदार्थों को प्रकट करने वाले केवलज्ञान और यथाख्यातचारित्र के द्वारा सबसे प्रधान हैं। केवलज्ञानी के लिए यहाँ भतिप्रज्ञ (उत्कृष्ट ज्ञान वाले) शब्द प्रयुक्त किया गया है।
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