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________________ ५२५ सूत्रता सून अन्वयार्थ (स महेसी) वे महर्षि भगवान् महावीर स्वामी (नाणेण सीलेण य दंसणेण) ज्ञान, दर्शन और चारित्र के बल से (असेसकम्म) ज्ञानावरणीय आदि समस्त कर्मों का (विसोहइत्ता) शोधन करके क्षय करके (अणुत्तरगं परमं सिद्धि गते) सर्वोत्तम अनुत्तर लोकाग्रभाग में स्थित परम सिद्धि को प्राप्त हुए। (साइमणंतपत्ते) जिस सिद्धि की आदि तो है, परन्तु अन्त नहीं है। भावार्थ उन महर्षि भगवान महावीर ने समस्त कर्मों को सदाकाल के लिए नष्ट करके लोक के अग्रभाग में स्थित, सर्वोत्कृष्ट सादि-अनन्तरूप सर्वप्रधान सिद्धि (मोक्ष) गति को प्राप्त किया। भगवान ने सिद्धि की प्राप्ति में अन्य किसी पर भरोसा न करके अपने ही पुरुषार्थ पर भरोसा किया, फलतः अपने ज्ञान एवं शील (चारित्र) के द्वारा कर्मबन्धन से मुक्ति प्राप्त की। व्याख्या वीरप्रभु ने सिद्धिगति कैसी और कैसे प्राप्त की ? ___ इस गाथा में यह बताया है कि महर्षि महावीर ने कैसे सिद्धिगति (मुक्ति) प्राप्त की, और वह सिद्धि कैसी है ? जनदर्शन का यह एक ठोस सिद्धान्त है कि सिद्धि (मुक्ति) किसी के देने से, किसी को प्रसन्न कर देने से या किसी विशिष्ट भगवत्शक्ति की मनौती करने से कदापि प्राप्त नहीं हो सकती, कोई भी देव किसी को मुक्ति नहीं दे सकता, और न ही एक व्यक्ति को किसी दूसरे मानव द्वारा साधना करने से मुक्ति प्राप्त हो सकती है। इसीलिए भगवान महावीर ने सिद्धि प्राप्ति के हेतु किसी अन्य पर भरोसा न रखकर अपनी ही ज्ञान-दर्शन-चारित्र तप की साधना में पुरुषार्थ के बल पर स्वयं ज्ञानावरणीय आदि समस्त कर्मों का सदा-सदा के लिए समूल नाश करके, आत्मा को परम विशुद्ध बना कर शैलेशी अवस्था से उत्पन्न चतुर्थ शुक्लध्यान में स्थित होकर पंचम सिद्धिगति प्राप्त की। सिद्धिगति कहें या मुक्ति कहें अथवा मोक्ष या निर्वाण कहें, बात एक ही है। परन्तु मोक्ष या निर्वाण के सम्बन्ध में विभिन्न धर्मों और दर्शनों में काफी मतभेद है। कोई सातवें आसमान पर मोक्ष बतलाता है, कोई (सांख्यदर्शन) त्रिविध दुःखों से अत्यन्त निवृत्ति को मोक्ष कहते हैं, कोई (वैशेषिकदर्शन) सुख, दु:ख आदि नौ आत्मगुणों के सर्वथा नष्ट हो जाने को मोक्ष कहते हैं, बौद्धदर्शन सर्वसंस्कार क्षणिक हैं, इस बात को सुदृढतया हृदय में जमा लेने को मोक्ष कहते हैं। इसीलिए इन सबका निराकरण करके जैनदर्शनसम्मत सर्वज्ञप्ररूपित वास्तविक सिद्धि या मुक्ति का स्वरूप बताने हेतु यहाँ सिद्धिगति के लिए कई विशेषणों का प्रयोग किया गया है, जिसे भगवान् महावीर ने प्राप्त किया था। सिद्धिगति के यहाँ पाँच विशेषण हैं-अनुत्तरा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003599
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1979
Total Pages1042
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size17 MB
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