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सूत्रकृतांग सूत्र
ऊपर फिर ५०० योजन चढ़ने के बाद मेखला प्रदेश में नन्दनवन है, उससे ५६२ योजन चढ़ने पर सौमनस वन आता है। उससे ३६००० योजन ऊपर चढ़ने के बाद सुमेरु के शिखर पर पण्डकवन है । इस प्रकार यह पर्वत राज चार नन्दन वनों से युक्त विचित्र क्रीड़ा का स्थान है। अन्य देवों की तो बात ही क्या, महेन्द्रगण भी स्वर्ग से भी अधिक रमणीय गुणों से युक्त होने के कारण वहाँ आकर उस पर क्रीड़ा करके आनन्द का अनुभव करते हैं; इसी प्रकार भगवान् के चरणों में भी प्राणिमात्र आध्यात्मिक आनन्द का अनुभव करते थे। अधिक क्या, स्वर्गनिवासी देवों को भी भगवान् की सेवा में आने से शान्ति मिलती थी। सचमुच भगवान् महावीर अपने युग में विश्व शान्ति के एकमात्र आराधना केन्द्र थे।
सुमेरुपर्वत मन्दर, मेरु, सुदर्शन और सुरगिरि आदि अनेक नामों से जगत् में प्रसिद्ध है, वैसे ही भगवान वर्धमान स्वामी भी वीर, महावीर, सन्मति, त्रिशलानन्दन, ज्ञातपुत्र, वैशालिक आदि अनेक नामों से प्रसिद्ध थे। अथवा सुमेरु की कन्दरा से उठने वाली देवों की कोमल ध्वनि दूर-दूर तक गूजती रहती है, वैसे ही भगवान् महावीर की वाणी भी अतीव ओजस्वी, गंभीर, सारगर्भित दिव्यध्वनि के रूप में प्रगट होती थी। जो दूर-दूर तक बैठे श्रोताओं को सुनाई देती थी और उनके अन्तर् पर अपना अमिट प्रभाव डाल देती थी। सुमेरु का वर्ण सोने की तरह शुद्ध एव चिकना है। भगवान् के शरीर का वर्ण भी शुद्ध सोने-का-सा उज्ज्वल था। सुमेरु से बढ़कर संसार में कोई पर्वत नहीं है, वैसे ही भगवान् से बढ़कर उस युग में गुणों में श्रेष्ठ कोई नहीं था। सुमेरुपर्वत अपनी ऊँची-नीची मेखलाओं के कारण दुर्गम है, वैसे भगवान् महावीर भी नय, प्रमाण, निक्षेप आदि की गहन भंगावलियों के कारण तत्त्वचर्चा के क्षेत्र में वादियों के द्वारा दुर्गम एवं दुर्जेय थे । अनेकान्तवाद का सिद्धान्त कहीं भी पराजित नहीं होता, वह अजेय दुर्ग है। भौम का अर्थ मंगलग्रह है, यानी मगलग्रह के समान सुमेरु अतीव उज्ज्वल कान्ति वाला है, वैसे ही भगवान् भी उज्ज्वल कान्ति से शोभायमान थे। भौम का दूसरा अर्थ भूमि सम्बन्धी परिणाम भी होता है। इस प्रसंग में भौम का अभिप्राय यह होगा कि जिस प्रकार पृथ्वी अनेक तेजोमय औषधियों से जाज्वल्यमान रहती है, वैसे ही सुमेरुपर्वत भी अनेक तेजोमय तरुसमूह से जाज्वल्यमान रहता है। भगवान् भी सुमेरु के समान अनन्तानन्त गुणों से प्रकाशमान थे ।
जिस प्रकार सुमेरुपर्वत ठीक भूमण्डल के बीचों-बीच है, उसी प्रकार भगवान् महावीर भी धर्मसाधकों की भावनाओं के मध्यबिन्दु थे।
आशय यह है कि रत्नप्रभा पृथ्वी के मध्य भाग में जम्बूद्वीप है। उसके बराबर मध्य भाग में सौमनस, विद्य त्प्रभ, गन्धमादन और माल्यवान इन चार
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