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वीरस्तुति : छठा अध्ययन
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| सुमेरु सब पर्वतों में श्रेष्ठ है, और ऊँची ऊँची मेखलाओं के कारण दुर्गम है तथा मंगल ग्रह के समान अतीव उज्ज्वल कान्ति वाला है || १२ |
सुमेरु पर्वत भूमण्डल के ठीक बीच में है, वह पर्वतराज सूर्य के समान अतीव दिव्य कान्तिवाला मालूम होता है । नाना प्रकार के रत्नों के कारण विचित्र वर्णों की मनोरम प्रभा से युक्त है । उसमें से चारों ओर उज्ज्वल किरणें निकलती रहती हैं, जो सूर्य की तरह दशों दिशाओं को अपने आलोक से प्रकाशित करती हैं ॥१३॥
जिस प्रकार संसार में पर्वतों का राजा सुमेरु यशस्वी कहलाता है, उसी प्रकार भगवान् महावीर स्वामी भी तीन लोक में महान् यशस्वी थे जैसे सुमेरु अपने गुणों के द्वारा सब पर्वतों में श्रेष्ठ है, इसी तरह धर्मसाधना में अतीव उग्र श्रम करने वाले ज्ञातपुत्र श्रमण महावीर जाति, यश, दर्शन, ज्ञान और शील आदि सद्गुणों में सबसे श्र ेष्ठ थे || १४ ||
व्याख्या
पर्वतराज सुमेरु के समान गुणों में सर्वश्रेष्ठ महावीर
दसवीं गाथा से चौदहवीं गाथा तक पर्वतराज सुमेरु की विशेषताऐं बता कर भगवान् महावीर को उससे उपमा देकर गुणों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है ।
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सुमेरुपर्वत की विशेषता बताते हुए शास्त्रकार कहते हैं- सुमेरुपर्वत एक लाख योजन ऊँचा है । वह भूमितल से लेकर ६६ हजार योजन ऊपर आकाश में है और एक हजार योजन नीचे भूगर्भ में स्थित है । आशय यह है कि जैसे सुमेरुपर्वत ऊर्ध्व, अधः और मध्य तीनों लोकों में अवस्थित है, वैसे ही भगवान् का प्रभाव भी तीनों लोकों में व्याप्त था । सुमेरु के तीन काण्ड - विभाग हैं भूमिमय, स्वर्णमय और वैडूर्यमय । इसी प्रकार भगवान् भी सम्यग्दर्शन - ज्ञान चारित्ररूप रत्नत्रय से सुशोभित थे । सुमेरुपर्वत के मस्तक पर स्थित पण्डकवन उसकी पताका के समान शोभा पाता है, वैसे ही वीरप्रभु भी तीर्थंकर नामक शीर्षस्थ पद से सुशोभित हैं । सुमेरुपर्वत ऊपर गगनचुम्बी है, और नीचे भूमिस्पर्शी है । सूर्यचन्द्र आदि ग्रहगण सदैव अविरत उसके चारों ओर प्रदक्षिणा देते रहते हैं । इसी प्रकार महामण्डलेश्वर सम्राट तक भी भगवान् के चारों ओर प्रदक्षिणा लगाया करते थे और उनका उपदेश सुनने के लिए सदा लालायित रहते थे । भगवान् महावीर के अहिंसा, सत्य आदि के सिद्धान्त सुमेरु के समान सदैव ऊर्ध्वमुखी थे । सुमेरु स्वर्ण की-सी सुन्दर कान्ति से तथा नन्दनवन आदि अनेक वनों से सुशोभित है वैसे ही भगवान् महावीर का दिव्यशरीर भी स्वर्ण जैसी कान्ति वाला एवं पीत वर्ण का था । सुमेरु के मस्तक पर चार नन्दन आदि वन हैं- जैसे कि भूमिमय विभाग में भद्रशाल वन है, उससे
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