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वीरस्तुति : छठा अध्ययन
से जानते हैं। अतः यह बताने का अनुग्रह कीजिए कि उन ज्ञातपुत्र श्रमण भगवान् महावीर का ज्ञान कैसा था ? दर्शन कैसा था ? और शीलआचार कैसा था ? आपने जैसा सुना और जैसा निश्चय किया हो, तदनुसार बताने की कृपा करें।
व्याख्या
भगवान् महावीर के ज्ञान, दर्शन, शील के सम्बन्ध में पुनः प्रश्न इस गाथा में पुनः भगवान् महावीर स्वामी के गुणों के सम्बन्ध में प्रश्न उठाया गया है कि भगवान महावीर स्वामी ने इतना ज्ञान --विशुद्ध, ज्ञान कहाँ से और कैसे-कैसे प्राप्त किया था ? अथवा भगवान महावीर का ज्ञान यानी विशेष अर्थ को प्रकाशित करने वाला बोध कैसा था? तथा उनका दर्शन-विश्व के समस्त चराचर सजीव-निर्जीव पदार्थों को देखने, उनकी यथार्थ वस्तुस्थिति पर विचार करने की उनकी दृष्टि कैसी थी ? अथवा सामान्य रूप से अर्थ को प्रकाशित करने वाला उनका दर्शन कैसा था ? यम-नियम या व्रतनियम रूप उनका शील-सदाचार कैसा था ? ज्ञातृवंशीय क्षत्रियपुत्र भगवान् महावीर स्वामी के ये सब कैसे थे ? हे स्वामिन् ! मैंने जो पूछा है, उस सम्बन्ध में आप यथार्थरूप से जानते हैं। अतः आपने जैसा भी सुना है, जो भी उनके बारे में निर्णय किया है, वह सब मुझे विस्तार से कहिए, ताकि मैं तथा अन्य साधक भी उनके आदर्श को जान सकें।
मूल पाठ खोयन्नए से कुसले महेसी', अणंतनाणी य अणंतदंसी । जसंसिणो चक्खुपहे ठियस्स, जाणाहि धम्मं च धिइं च पेहि ।।३।।
संस्कृत छाया खेदज्ञः स कुशलो महाऋषिः, अनन्तज्ञानी च अनन्तदर्शी । यशस्विनश्चक्षुपथे स्थितस्य, जानासि धर्मञ्च धृतिञ्च प्रेक्षस्व ।।३।।
अन्वयार्थ (से खेयमए) वे ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर स्वामी संसार के प्राणियों का दुःख जानते थे। (कुसले) कर्मों को उखाड़ फेंकने में कुशल थे, (महेसी) महान् ऋषि थे - सच्चिदानन्दमय सत्यस्वरूप के द्रष्टा थे अथवा (आसुपन्ने) उनका उपयोग सदा सर्वत्र लगा रहता था। (अणतनाणी य अणंतदंसी) अनन्तज्ञानी-सर्वज्ञ और अनन्तदर्शी---सर्वदर्शी थे। (जसंसिणो) अक्षय यशवाले थे। (चक्खुपहे ठियस्स) उन जनता के नयनपथ में स्थित अर्थात् जनता की आँखों में बसे हुए अथवा जिनका
१. कहीं-कहीं 'कुसले महेसी' के बदले 'कुसलासुपन्ने' पाठ भी मिलता है ।
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