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सूत्रकृतांग सूत्र
व्याख्या विश्व हितंकर अनुपम धर्म का प्ररूपक कौन ?
इस गाथा में श्री जम्बूस्वामी द्वारा अपने गुरु श्री सुधर्मा स्वामी से अनुपम धर्म के प्रतिपादक के सम्बन्ध में पूछा गया प्रश्न अंकित किया गया है । अथवा इस शास्त्र के प्रथम अध्ययन की प्रथम गाथा में कहा गया है कि जीव को बोध प्राप्त करना चाहिए। पूर्व अध्ययनों में उपसर्गपरिज्ञा, स्त्रीपरिज्ञा तथा नरकविभक्ति आदि का जो वर्णन है, उसे सुनकर जन्म-मरण के भय से उद्विग्न पुरुषों ने श्री सुधर्मा स्वामी से पूछा-इस अनुपम धर्म का बोध किसने दिया ?
वास्तव में जब श्री जम्बूस्वामी से श्रमण, ब्राह्मण आदि ने भगवान् महावीर स्वामी की विशेषताओं के सम्बन्ध में पूछा होगा, तभी उन्होंने सुधर्मास्वामी के सामने अपनी जिज्ञासा प्रस्तुत की होगी कि श्रमण निर्ग्रन्थ आदि ब्राह्मण अर्थात् ब्रह्मचर्य आदि के अनुष्ठान में तत्पर रहने वाले एवं आगारी अर्थात् क्षत्रिय आदि सद्गृहस्थ तथा बौद्ध आदि परमतवादी कई सज्जनों ने मुझसे पूछा है कि यह महापुरुष कौन हैं, कैसे हैं, जिन्होंने दुर्गति में गिरते हुए जीव को धारण करने में समर्थ एकान्त विश्व हितंकर अनुपम अहिंसादि धर्म का प्रतिपादन पदार्थ के यथार्थ स्वरूप का निश्चय करके या समत्वदृष्टिपूर्वक किया है ? . इसी से सम्बन्धित अन्य प्रश्नमाला अगली गाथा में प्रस्तुत की जाती है
। मूल पाठ कहं च गाणं कह दसणं से, सीलं कहं नायसुतस्स आसी ?। जाणासि णं भिक्खू जहातहेणं, अहासुतं बूहि जहा णिसंतं ॥२॥
संस्कृत छाया कथं च ज्ञानं, कथं दर्शन तस्यः शीलं कथं ज्ञातसुतस्य आसीत् ? जानासि खलु भिक्षो ! याथातथ्येन, यथाश्रुतं ब्रूहि यथा निशान्तम् ॥२॥
अन्वयार्थ (से नायसुतस्स) उन ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर स्वामी का (णाणं) ज्ञान (कह) कैसा था ? तथा (कह दसणं) उनका दर्शन कैसा था ? (सीलं कहं आसी ?) तथा उनका शील यानी यम-नियम का आचरण कैसा था ? (भिक्खू) हे मुनिवर ! (जहातहेणं जाणासि) आप इसे यथार्थरूप से जानते हैं, इसलिए (अहासुतं) जैसा आपने सुना है, (जहा णिसंत) जैसा निश्चय किया है, (बहि) वैसा हमें कहिए।
भावार्थ आर्य जम्बूस्वामी ने गुरुदेव श्री सुधर्मास्वामी से पुनः प्रार्थना की“गुरुदेव ! ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर के सम्बन्ध में आप खूब अच्छी तरह
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