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सूत्रकृतांग सूत्र
विशेषताएँ स्मृतिपथ पर आ जाती हैं । भगवान् के नामस्मरण से भक्तहृदय अनायास ही भगवान् में तन्मय होने लगता है, साधक एवं भक्त को उपसर्गो, परीषहों, कष्टों एवं त्याग-तप में टिके रहने का अपूर्व बल मिलता है। उनके आदर्श चरित्र से महान् प्रेरणा मिलती है । भला प्रभुमय या भगवत्प्रेम से भरे निर्मल हृदय में पाप-ताप को टिकने का अवकाश ही कहाँ मिल सकता है ? जन्म-जन्मान्तर के पाप-तापों का शमन करने के लिए वीरस्तुति अमोघ औषधि है। वीरप्रभु की स्तुति एवं गुणोत्कीर्तन साधक एवं भक्त की सुषुप्त सद्वृत्ति-प्रवृत्तियों को सहसा उबुद्ध कर देती है।
इन्हीं उद्देश्यों को लेकर वीरस्तुति की श्री सुधर्मास्वामीकृत रचना शास्त्रकार ने छठे अध्ययन के रूप में प्रस्तुत की है।
वीर और स्तुति शब्द के निक्षेपार्थ- वीर शब्द के द्रव्य, क्षेत्र, काल, और भाव के भेद से चार निक्षेप होते हैं । ज्ञशरीर और भव्यशरीर से व्यतिरिक्त द्रव्यवीर वह है, जो द्रव्य के लिए युद्ध आदि में अद्भुत कौशल दिखाता है । अथवा जो वीर्यवान् द्रव्य हो, वह भी द्रव्यवीर के अन्तर्गत माना जाता है । जैसे तीर्थंकर अनन्तबल-वीर्य से युक्त होते हैं, वे लोक को गेंद की तरह अलोक में फैंकने में समर्थ हैं। वे मन्दराचल को दण्ड बनाकर उस पर रत्नप्रभा पृथ्वी को छत्र के समान धारण कर सकते हैं । चक्रवर्ती भी बलवीर्य में सामान्य मनुष्यों या राजाओं से बढ़कर होते हैं इसलिए उन्हें भी द्रव्यवीर कहा जा सकता है । क्षेत्रवीर वह है, जो अपने क्षेत्र में अद्भुत पराक्रम दिखाता है या वीर कहलाता है, इसी प्रकार कालवीर वह है, जो अपने युग मेंअपने समय में अद्भुत पराक्रमशाली होता । अथवा काल (मृत्यु) पर विजय पा लेता है, उसे भी कालवीर कहा जा सकता है । भाववीर वह है, जिसकी आत्मा क्रोध, मान, माया, लोभ, पंचेन्द्रियविषयों, तथा परीषह, उपसर्ग आदि से पराजित नहीं हुई है। जैसे कि आगमों में कहा है --
कोहं माणं च मायं च लोभं पंचेंदिथाणि य । दुज्जयं चेव अप्पाणं, सव्वमप्पे जिए जियं ।। जो सहस्सं सहस्साणं, सगामे दुज्जए जिणे ।
एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमोजओ ।। अर्थात् क्रोध, मान, माया, लोभ और पाँचों इन्द्रियाँ, ये दुर्जय हैं । इसलिए एकमात्र आत्मा को जीत लेने पर सब जीत लिये जाते हैं। जो पुरुष अकेला ही युद्ध में लाखों दुर्जय सुभटों को जीत लेता है, उससे भी बढ़कर विजयी वह है, जो एक अपनी आत्मा को जीत लेता है । और भी कहा है
एक्को परिभमउ जए वियर्ड जिणकेसरी सलीलाए। कंदप्पदुट्ठदाढो मयणो विड्डारियो जेणं
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