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नरकाधिकार : पंचम अध्ययन - - द्वितीय उद्देशक
मूल पाठ
समूसियं नाम विधूमठाणं, जं सोयतत्ता कलुणं थांति । अहोसिर कट्टु विगत्तिऊणं, अयंव सत्थेहि समोसवेंति ||८|| संस्कृत छाया
समुच्छ्रितं नाम विधूमस्थानं, यत् शोकतप्ताः करुणं स्तनन्ति । अधः शिरः कृत्वा विकर्त्यायोवत् शस्त्रः समुत्स्रवन्ति
||८||
अन्वयार्थ
( समूसियं नाम विधूमठाणं ) नरक में ऊँची चिता के समान धूमरहित एक स्थान है, (जं सोयतत्ता ) जिस स्थान को पाकर शोकसंतप्त नारकी जीव ( कलुणं rit) करुणस्वर में विलाप करते हैं । ( अहोसिरं कट्टु ) नरकपाल नारकीजीव के सिर को नीचा करके ( विगत्तिऊणं) तथा उसके शरीर को काटकर ( अयंव सत्थे हि ) लोहे के शस्त्रों से (समोसवेंति) उसके टुकड़े-टुकड़े कर डालते हैं ।
व्याख्या
६१५
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नारकी जीवों की वही हाय-हाय इस गाथा में नरकपालों द्वारा नारकों को दी जाती हुई शस्त्र पीड़ा का वर्णन है । चिता के समान धूमरहित एक नरकभूमि होती है, जो अत्यन्त पीड़ा का स्थान है । उस स्थान पर पहुँचते ही नारकी जीव शोक से विह्वल होकर करुण क्रन्दन करते हैं । क्रूर नरकपाल उनका मस्तक नीचा करके, उनके शरीर को लोहे के शस्त्रों से काटकर टुकड़े-टुकड़े कर डालते हैं ।
यहाँ 'नाम' शब्द सम्भावना के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । जिसके लगाने से वाक्य का अर्थ होता है- नरक में धूमरहित एक उच्च चिताकार स्थान की सम्भावना है ।
मूल पाठ
समूसिया तत्थ विसूणियंगा, पक्खीहि खज्जति अओमुहेहि । संजीवणी नाम चिट्ठितीया, जंसी पया हम्मइ पावचेया ॥ ॥
संस्कृत छाया
समुच्छ्रितास्तत्र विशेणितांगाः पक्षिभिः खाद्यन्तेऽयो मुखैः 1 संजीवनी नाम चिरस्थितिका, यस्यां प्रजा हन्यते पापचेतसः || ६ ||
अन्वयार्थ
( तत्थ ) उस नरक में (समूसिया ) अधोमुख करके लटकाए हुए ( विसूणियंगा ) तथा जिनके शरीर की चमड़ी उधेड़ ली गई है, ऐसे नारकी जीवों को (अओमु हेहि ) लोहे की तीखी चोंच वाले ( पक्खीहि ) पक्षीगण ( खज्जति) खा लेते हैं । ( संजीवणी नाम चिट्ठितीया ) वहाँ संजीवनी ( नरकभूमि संजीवनी इसलिए कहलाती है कि
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