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सूत्रकृतांग सूत्र
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वहाँ मरण कष्ट पाकर भी जीव मरते नहीं है तथा उनकी आयु भी बहुत लम्बी होती है) नामक नरकभूमि है, जो चिरकाल तक की स्थिति वाली होती है । (जंसी) जिस नरक में (पावचेया पया हम्मइ) पापकर्मी जनता मारी जाती है ।
भावार्थ
जिस नरक में नीचा मुँह करके लटकाये हुए तथा शरीर की खाल उधेड़े हुए नारकजीव लोहे की चोंच वाले पक्षियों द्वारा खा डाले जाते हैं । नरक की भूमि संजीवनी कहलाती है । क्योंकि मरण के समान कष्ट पाकर भी नारकी जीव आयु शेष रहने के कारण मरते नहीं हैं में पहुँचे हुए प्राणियों की उम्र भी काफी लंबी होती है । उस नरक में मारे जाते हैं ।
व्याख्या
नरक में लोहमुखी पक्षियों द्वारा घोर कष्ट
इस गाथा में नारकों की दीर्घकालीन स्थिति का संकेत किया गया है । वास्तव में नरक का नाम संजीवनी भी है । जिसका अर्थ होता है - जहाँ मृत्यु - सा कष्ट पाकर भी जीव आयुष्य-बल होने के कारण मरते नहीं हैं इसीलिए नरकभूमि संजीवनी औषधि के समान जीवन देने वाली कहलाती है क्योंकि नारकी जीव टुकड़ े-टुकड़े कर देने पर भी आयु शेष रहने के कारण मरता नहीं है । नरक की उत्कृष्ट आयु ३३ सागरोपम की है, इसीलिए शास्त्रकार कहते हैं - 'चिरट्ठितीया' अर्थात् वह चिरकालीन स्थिति वाली है । नरक में गए हुए पापी मुद्गर आदि द्वारा मारे - पीटे जाते हैं । नरक में किसी खम्भे पर मुँह नीचा और पैर ऊपर करके चाण्डाल मृतशरीर की तरह उसे लटका देते हैं । फिर उसकी चमड़ी उधेड़ डालते हैं, तत्पश्चात लोहे की सी तीखी चोंच वाले कौए, गीध आदि पक्षी उसे खा जाते हैं । इस प्रकार वे नारकी जीव नरकपालों द्वारा अथवा परस्पर एक-दूसरे के द्वारा छेदन-भेदन किये जाने पर भी तथा उबाले जाने से मूच्छित हो जाने पर वेदना की अधिकता का अनुभव करते हुए भी वे मरते नहीं । नरक की पीड़ा से व्याकुल होकर वे मरना भी चाहते हैं, पर अत्यन्त पीसे जाने पर भी वे मरते नहीं है, किन्तु पारे के समान पुनः मिल जाते हैं ।
तथा उस नरक पापचेता प्राणी
मूल पाठ
तिक्खाहि सूलाहि निवाययंति वसोगयं सावययं व लद्धं ।
ते सूलविद्धा कलुणं थांति, एगंतदुक्खा दुहओ गिलाणा ॥ १० ॥
संस्कृत छाया तीक्ष्णाभिः : शूलाभिर्निपातयन्ति वशं गतं श्वापदमिव लब्धम् । ते शूलविद्धा करुण स्तनन्ति, एकान्तदुःखाः द्विधा तो ग्लानाः ॥ १०॥
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