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नरक विभक्ति : पंचम अध्ययन-प्रथम उद्देशक
व्याख्या
जैसा और जितना दुष्कर्म : वैसा और उतना ही दुःख इस गाथा में शास्त्रकार कर्मसिद्धान्त के आधार पर स्पष्ट बताते हैं कि जिस प्राणी ने जिस प्रकार से किसी जीव को क्षति पहुँचाई है, उसे वैसे ही रूप में तदनुसार क्षति पहुँचती है। जैसा दुःख जिसने दूसरे जीव को दिया है, उसे वैसा ही दुःख मिलता है । जो व्यक्ति दूसरों को धोखा देकर या गला काटकर खुश होता है, शास्त्रकार कहते हैं --- 'अप्पेण अप्पं इह वंचइत्ता।' ऐसा जीव मनुष्यभव में दूसरों को धोखा देता है, वह अपने आप को धोखा देता है, क्योंकि जिस प्रकार से उसने दूसरों को ठगा है, उसे उसी सिक्के में उसका भुगतान करना होगा। दूसरे प्राणी के घातरूप अल्पसुख के लोभ से जो जीव अपने आपकी वंचना करता है, वह अनेक भव करता हुआ सैकड़ों और हजारों बार मच्छीमार, ब्याध, मल्लाह आदि अधम जातियों में जन्म लेता है। उन जन्मों में वह विषयलम्पट तथा पुण्यविमुख होकर उक्त दुष्कर्म के फलस्वरूप महाघोर और अतिदारुण नरकस्थान को पाप करता है।
नरक में रहने वाले क्रूरकर्मीजीव पूर्वजन्म के वैरभाव को स्मरण करके परस्पर एक-दूसरे को मार-पीट, गालीगलौज आदि करके दुःख उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार शास्त्रकार की दृष्टि से वे चिरकाल तक निवास करते हैं ।
'जहाकडं कम्म तहासि भारे'--अर्थात् जिस जीव ने पूर्वजन्म में जैसे और जिस नीच अध्यवसाय से नीच और उससे भी नीच कर्म हँस-हँसकर किये हैं, उस जीव को वेदना भी उसी प्रकार की तीव्र या तीव्रतर होती है। वह वेदना अपने आप से भी होती है, दूसरे के द्वारा भी मिलती है और दोनों से भी होती है । जो पूर्वजन्म में मांसाहारी थे, उनको यहाँ नरक में भी उनका ही मांस आग में पकाकर खिलाया जाता है। जो पूर्वजन्म में मद्य पीते थे, उनको भी अपने ही रक्त को उबाल कर गर्म-गर्म उनके मुह में उडेला जाता है। पूर्वजन्म में जो किसी प्राणी का रक्त पीते थे, उन्हें भी गर्म सीसा पिघला कर पिलाया जाता है। पूर्वजन्म में शिकारी या मच्छीमार बनकर जो मृग या मछली आदि का घात करते थे, वे यहाँ उसी तरह काटे और मारे जाते हैं । जो मिथ्याभाषण, पैशुन्य, परनिन्दा आदि करते थे, उनके मिथ्याभाषण आदि पापों का स्मरण कराकर उनकी जीभ काट ली जाती है । जो पूर्वजन्म में दूसरे का द्रव्य हरण करते थे, उनके अंगोपांग काट लिये जाते हैं, जो परस्त्रीसेवन करते थे, उनका अण्डकोश काट लिया जाता है, तथा उन्हें शाल्मलिवृक्ष का आलिंगन कराया जाता है। इसी तरह जो महारम्भी एवं महापरिग्रही तथा क्रोध, मान, माया, लोभ (कषाय) से ओतप्रोत थे, उन्हें नरकपालों द्वारा जन्मान्तर के महारम्भ आदि का स्मरण दिलाकर उसी तरह का दुःख दिया जाता है। इसलिए
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