________________
६०४
सूत्रकृतांग सूत्र
और ताँबा गलाकर उनके मुँह में जबर्दस्ती उंडेल देते हैं, जिससे वे बेचारे नारक आर्तस्वर से रुदन करते हैं ।
व्याख्या
प्यास बुझाने के लिए पिघला हुआ गर्म सीसा और ताँबा
इस गाथा में नारकों की दुःखगाथा का रोमाञ्चकारी वर्णन दिया गया है । ताजी सुलगाई हुई आग के तीव्र तेज से जलती हुई तथा रक्त, मवाद, मांस, शरीर के कटे-फटे, सड़े-गले अवयव एवं गन्दे घिनौने पदार्थों से भरी, बदबूदार पूर्वोक्त कुम्भी में अरक्षित तथा आर्तनादपूर्वक करुणस्वर से विलाप करते हुए अज्ञानी नारकी जीव को नरकपाल जबरन डालकर पकाते हैं । प्यास से व्याकुल नारकी जीव जब पानी माँगते हैं तो दुष्ट नरकपाल उन्हें यह याद दिलाते हुए कि 'तुम्हें तो मद्य बहुत प्रिय था' लो पीओ इसे, यों कहकर तपाया हुआ सीसा और ताँबा उनके मुँह में जबर्दस्ती उडेल देते हैं । उन्हें पीते हुए वे बहुत जोर से आर्तनाद करते हैं, रोते-बिलखते हैं, बहुत ही आजीजी करते हैं, पर क्रूर परमाधार्मिक बिलकुल दया या रियायत उन पर नहीं करते ।
मूल पाठ अप्पेण अप्पं इह वंचइत्ता, भवाहमे पुव्वसते सहस्से
चिट्ठेति तत्थ बहुकूरकम्मा, जहाकडं कम्म तहासि भारे ॥ २६ ॥ संस्कृत छाया
आत्मनाऽऽत्मानमिह वञ्चयित्वा भवाधमान् पूर्वं शतसहस्रशः । तिष्ठन्ति तत्र बहुक्रूरकर्माणः, यथाकृतं कर्म तथाऽस्य भारः ||२६|| अन्वयार्थ
( इह ) इस मनुष्यभव में ( अप्पेण अप्पं वंचइत्ता ) अपने आप ही खुद की वंचना ( ठगी) करके ( पुव्वसते सहस्से भवाह मे ) पूर्वकाल में लुब्धक ( व्याध ) आदि सैकड़ों और हजारों नीच (अधम ) भवों को प्राप्त करके ( बहुकूरकम्मा तत्थ चिट्ठेति) बहुक्रूरकर्मी जीव उस नरक में रहते हैं । ( जहाकडं कम्म तहा से भारे) पूर्वजन्म में जिसने जैसा कर्म किया है, उसके अनुसार ही उसे पीड़ा प्राप्त होती है । भावार्थ
इस मनुष्यजन्म में थोड़े-से सुख के लोभ में आकर जो अपने आपकी वंचना स्वयं करते हैं, वे इससे पूर्व सैकड़ों और हजारों बार शिकारी, मच्छीमार आदि नीचातिनीच योनियों में जन्म पाकर फिर अत्यन्त क्रूरकर्मी वे जीव नरक में निवास करते हैं । जिस जीव ने पूर्वजन्म में जैसा कर्म किया है, उसे उसके अनुसार ही पीड़ारूप फल प्राप्त होता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org